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गुणस्थान विवेचन उपशम अपूर्वकरण गुणस्थान में ही गमन करते हैं।
३. यदि उपशमक अनिवृत्तिकरण गुणस्थानवर्ती मुनिराज का आयुक्षय के कारण मरण होता है तो वे विग्रहगति के प्रथम समय में नियम से चौथे अविरत -सम्यक्त्व गुणस्थान में ही गमन करते हैं।
आगमन - १. उपशमक अनिवृत्तिकरण में आगमन नीचे के उपशमक अपूर्वकरण गुणस्थान से ही होता है।
२. उपशम श्रेणी से नीचे उतरते समय में दसवें उपशमक सूक्ष्मसांपराय गुणस्थान से ही इस नौवें गुणस्थान में आगमन होता है।
३. क्षपक अनिवृत्तिकरण गुणस्थान में आगमन मात्र क्षपक अपूर्वकरण गुणस्थान से होता है। विशेष अपेक्षा विचार -
१. अनंतगुणी विशुद्धि आदि सर्व आवश्यक कार्य इस अनिवृत्तिकरण गुणस्थान में अष्टम गुणस्थानवत ही होते हैं; उन्हें यहाँ भी लगा लेना।
२. चारित्रमोहनीय कर्म बादरकृष्टि से सूक्ष्मकृष्टिरूप हो जाता है। इस कृष्टिकरण से सूक्ष्मलोभ कषाय के बिना शेष सर्व ग्यारह कषायें और हास्यादि सर्व नौ नोकषायों का सर्वथा उपशम या क्षय हो जाता है।
८३. प्रश्न : कृष्टिकरण किसे कहते हैं ?
उत्तर : क्रम से कषायों को कृष/हीन करने को कृष्टिकरण कहते हैं। अर्थात् अनुभाग/फल प्रदान करने की शक्ति का उत्तरोत्तर कम-कम होते जाना ही कृष्टिकरण है। यह अति विशिष्ट महत्त्वपूर्ण कार्य अनिवृत्तिकरण गुणस्थान में ही होता है।
८४. प्रश्न : बादरकृष्टि किसे कहते हैं?
उत्तर : (अनिवृत्तिकरण नामक नौवें गुणस्थान के पूर्व पाये जानेवाले स्पर्धकों को पूर्व स्पर्धक कहते हैं। अनिवृत्तिकरण के निमित्त से अनुभाग क्षीण स्पर्धकों को अपूर्वस्पर्धक कहते हैं।)
अपूर्वस्पर्धक से भी अनंतवें भाग अनुभाग क्षीण स्पर्धकों को बादरकृष्टि कहते हैं। अर्थात् संज्वलन क्रोध, मान, माया और लोभ कषायों के अनुभाग को घटाना/क्षीण करना ही बादरकृष्टि है। बादर शब्द का अर्थ है
अनिवृत्तिकरण गुणस्थान स्थूल अर्थात् बड़े-बड़े टुकड़े करना।
८५. प्रश्न : सूक्ष्मकृष्टि किसे कहते हैं ?
उत्तर : बादरकृष्टि से भी अनन्तवें भाग अनुभाग क्षीण स्पर्धकों को सूक्ष्मकृष्टि कहते हैं।
वस्तु-व्यवस्था की अद्भुतता तथा सूक्ष्मता तो देखो ! क्षपक अनिवृत्तिकरणवाले महामुनिराज अब मात्र यथायोग्य दो अंतर्मुहूर्त समाप्त होते ही (अर्थात् दसवाँ और बारहवाँ गुणस्थान का समय व्यतीत करते ही) सर्वज्ञ भगवान/अरहंत बननेवाले हैं; तथापि उन्हें अभी भी आठों कर्मों की सत्ता मौजूद है; उनमें से एक भी कर्म का पूर्ण नाश नहीं हुआ है।
मोहनीय कर्म नष्टोन्मुख है; तथापि सूक्ष्मलोभ अपने सामर्थ्य से अपने अस्तित्व की जानकारी महामुनिराज को भी मानो गौरव से दिखा रहा है। जैसे - बुझता हुआ दीपक अन्त में भभक कर बुझ जाता है। अन्य ज्ञानावरणादि सातों कर्म अपनी-अपनी स्थिति अनुसार सत्ता में हैं; फिर भी उन सातों कर्मों की निर्जरा तो उत्तरोत्तर यथाक्रम तथा यथास्थान चालू है ही।।
३. भिन्न समयवर्ती जीवों के परिणाम सुनिश्चित, विसदृश तथा एकसमयवर्ती जीवों के परिणाम सुनिश्चित, सदृश होते हैं।
४. अनिवृत्तिकरण बादर सांपराय गुणस्थान के नाम में जो बादर शब्द आया है, वह अंतदीपक है। पहले गणस्थान से लेकर इस गणस्थान पर्यंत के सर्व जीव बादर कषाय सहित हैं। जैसे मिथ्यात्व बादर सांपराय, सासादनसम्यक्त्व बादर साम्पराय, मिश्र बादर सांपराय आदि ।
धवला पुस्तक १ का अंश (पृष्ठ १८४ से १८७) अनिवृत्ति बादर सांपरायिक प्रविष्ट शुद्धि संयतों में उपशमक भी होते हैं और क्षपक भी होते हैं ।।१६।।
सांपराय शब्द का अर्थ कषाय है और बादर स्थूल को कहते हैं। इसलिये स्थूल कषायों को बादर-सांपराय कहते हैं। और अनिवृत्तिरूप बादर सांपराय को अनिवृत्तिबादरसांपराय कहते हैं। उन अनिवृत्ति बादर सापरायरूप परिणामों में जिन संयतों की विशुद्धि प्रविष्ट हो गई है, उन्हें