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________________ १४ गोम्मटेश्वर बाहुबली : एक नया चिन्तन गोम्मटेश्वर बाहुबली : एक नया चिन्तन गुलाम ही होते हैं? एक चक्रवर्ती के राज्य में लाखों चरम शरीरी जब बात नहीं बनी तो मंत्रियों ने सोचा दोनों गर्मी में हैं, तदभव मोक्षगामी भी रहते हैं। तो क्या वे सब स्वाभिमान बेचकर क्रोध में, मान में बेहोश हैं। बेहोश लोगों के मुंह पर पानी के छींटे रहते होंगे? मिथ्यादष्टियों के राज्य में भी जब सम्यग्दृष्टि और मारने पर वे होश में आ जाते हैं; इस विचार से ही उन्होंने व्रती स्वाभिमान पूर्वक रह सकते हैं और रहते भी हैं तो भरत तो जलयुद्ध नहीं, जलक्रीड़ा-प्रतियोगिता रखी कि पानी में जाने से सम्यग्दृष्टि थे, बड़े भाई थे, उनके चक्रवर्ती होने से बाहुबली का दोनों ठण्डे पड़ेंगे तथा छींटे पड़ने से होश में आवेंगे तो युद्ध स्वाभिमान कैसे खण्डित हो सकता था? मिलन में बदल जावेगा। पर यहाँ भी सफलता नहीं मिली और दूतों के माध्यम से बात करने में कभी-कभी बात बनती भिड़ने की बारी आई अर्थात् मल्लयुद्ध हुआ। नहीं, अपितु बनती बात बिगड़ जाती है। यहाँ हुआ भी ऐसा ही। दोनों की रगों में एक पिता का खून बह रहा है, जब वह यदि भरत बाहुबली से स्वयं मिलते और स्नेहपूर्वक उनके आपस में आलिंगित होगा तो अपना कमाल दिखाये बिना सामने यह समस्या रखते तो हो सकता है बाहुबली सहज ही उस रहेगा ही नहीं; यह विश्वास था दोनों ओर के मंत्रियों का और समय समस्या का समाधान प्रस्तुत कर देते । अतः मंत्रियों ने सोचा वह सफल भी हो गया। बाहुबली का द्वेष राग में बदल गया। क्यों न दोनों भाईयों को आपस में मिला दिया जाय । जब उनकी उन्होंने भरत को हाथों पर ऊपर उठा लिया पर नीचे पटका आँख से आँख मिलेगी तो सब द्वेष गल जायेगा, स्नेह उमड़ पड़ेगा नहीं; चाहते तो पटक सकते थे, उन्हें चित्त कर सकते थे; पर और समस्या का सहज समाधान हो जायेगा। नेत्रयुद्ध और कुछ अब जीतने का भाव नहीं रहा था, भाई के प्रति, पूज्य भाई के नहीं था, मात्र दोनों की आँख से आँख मिलाने का उपक्रम था। प्रति विनय का भाव जागृत हो गया था; अतः उन्हें कंधे पर बिठा लिया। उन्हें हराया नहीं, अपितु लड़ाई बिना फैसले के जिसके हृदय में अपराध भावना होती है, उसकी आँख नीची हुए बिना नहीं रहती। भरत की आँखें नीची इसलिए ही समाप्त कर दी; क्योंकि जो जीतना चाहता था, बाहुबली का नहीं हुई कि वे कमजोर थीं; क्योंकि चक्रवर्ती की आँख वह मान गल गया था। सबसे अधिक शक्ति-सम्पन्न होती है, अपितु इसलिए नीची यद्यपि भरत हार नहीं पाये थे, पर उन्होंने हार के किनारे हुई कि उनके मन में यह अपराध भावना काम कर रही थी पहुँच कर हार का अनुभव किया और उनका क्रोध प्रज्वलित हो कि मैं बाहुबली से वह भूमि छीनना चाहता हूँ, जो उन्हें उठा। विवेक खो गया, उनका चक्रवर्तित्व हिलोरे लेने लगा पिताश्री ऋषभदेव ने दी थी। और उन्होंने चक्र चला दिया । चेतन भरत ने विवेक खो दिया (10)
SR No.008349
Book TitleGommateshwar Bahubali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages9
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size75 KB
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