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________________ १२ गोम्मटेश्वर बाहुबली : एक नया चिन्तन प्रस्ताव आता है कि युद्ध सेनाओं में नहीं दोनों भाइयों में हो और वह भी बिना हथियार के । तब निश्चित हुए तीन युद्ध - नेत्रयुद्ध, जलयुद्ध और मल्लयुद्ध । इस प्रसंग पर गहराई से विचार करने पर अनेक गहरे संकेत परिलक्षित होते हैं। यह निर्णय क्रोध, मान और लोभोन्मत्त राजाओं के विरुद्ध विचारवान मंत्रियों की विजय का सूचक है, जिन्होंने युग के आदि में ही जर और जमीन के कारण होने वाले विनाशक युद्ध को एक अहिंसक युद्ध में बदल दिया, खूँखार युद्ध को क्रीड़ा प्रतियोगिता का रूप दे दिया। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि प्रतियोगितात्मक खेलों में युद्धोन्माद का विरेचन हो जाता है। हार-जीत में प्रतिफलित होने वाले खेलों का जन्म युग की आदि में इसी घटना से हो गया हो तो कोई आश्चर्य नहीं । दूसरे, भरत से बाहुबली तो बाद में जीते, पर बाहुबली के मंत्री अपनी कूटनीति में भरत के मंत्रियों से पहले ही जीत चुके थे कि जब उन्होंने भरत के मंत्रियों और भरत से यह बात स्वीकृत करा ली थी; क्योंकि उन्होंने अपनी कूटनीति से भरत को निहत्था कर दिया था, जबकि भरत चक्रवर्ती की शक्ति तो चक्र था, उसकी सेना थी । चक्रवर्ती अकेले व्यक्ति का नाम नहीं; अपितु चक्रवर्ती के समस्त परिकरयुक्त व्यक्ति को चक्रवर्ती कहा जाता है। यह भूल भरत को तब समझ में आई, जबकि वे तीनों युद्धों में हार से गये । यही कारण है कि उन्होंने क्रुद्ध होकर चक्र चला दिया। युद्ध के पहिले यह आवश्यक नहीं था कि भरत का पक्ष उक्त प्रकार की (9) गोम्मटेश्वर बाहुबली : एक नया चिन्तन शर्तें स्वीकार करे ही। छह खण्ड भरत के सामने नहीं, भरत चक्रवर्ती के सामने झुके थे और बाहुबली से भरत चक्रवर्ती नहीं, सिर्फ भरत लड़ रहे थे, चक्ररत्न से रहित भरत लड़ रहे थे । जब मैं गहराई में जाता हूँ तो मुझे इसमें कुछ और भी नये संकेत दिखाई देते हैं। हो सकता है, उनसे आप भी सहमत हों। दोनों ओर के मंत्री युद्ध टालना चाहते थे। “जनता या सेना क्यों मरे-कटे, दोनों भाई ही.....।" यह बात अपने स्वामियों के प्रति वफादार मंत्री कैसे सोच सकते हैं? अतः वे तो हर प्रकार से युद्ध टालना ही चाहते थे। वे जानते थे कि समस्या राज्य छीनने और आधीनता स्वीकार करने की उतनी नहीं है, जितनी मानापमान की है। सवाल बान-बात का है, मूँछ का है; जमीन का नहीं, राज्य का नहीं, नमस्कार करवाने और नहीं करने का भी नहीं, क्योंकि भाई के नाते तो बाहुबली नमस्कार करने को तैयार ही थे और यदि चक्र का प्रवेश रुकता नहीं तो भरत को बाहुबली को आधीन करने का विकल्प भी नहीं था । भरत बाहुबली को आधीन करके कोई गुलाम नहीं बनाना चाहते थे, अपितु दायाँ हाथ बनाना चाहते थे । बाहुबली भी चाहते तो प्रेम से चक्रवर्ती का सहयोग कर सकते थे, वहाँ उनका अपमान नहीं, बहुत बड़ा सम्मान होने वाला था । समस्या बहुत बड़ी नहीं थी। यदि दोनों भाई स्नेह से मिलकर सुलझाना चाहते तो सहज सुलझ सकती थी। छह खण्ड में चक्रवर्ती तो सिर्फ एक होता है, तो क्या उसे छोड़कर और स
SR No.008349
Book TitleGommateshwar Bahubali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages9
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size75 KB
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