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चलते फिरते सिद्धों से गुरु अप्रत्याख्यानावरण चौकड़ी के उदय में अन्तर में मुनिदशा के योग्य शुद्धि का पुरुषार्थ नहीं चलता, उन्हें भी द्रव्यलिंगी मुनि कहा जाता है, उन्हें भी सात प्रकृतियों का क्षय हो सकता है। __पूज्यता का आधार तो बाहर में २८ मूलगुणों का निर्दोष पालन करना ही मुख्य है। अतः जो भी २८ मूलगुणों का निर्दोष पालन करते हैं वे सब पूज्य हैं। अन्दर के परिणामों की पहचान तो सर्वज्ञ के सिवाय किसी को होती नहीं है, अतः 'द्रव्यलिंग' शब्द को निन्दा के अर्थ में नहीं समझना चाहिए। अभी समय हो गया, अतः आज इतना ही, शेष अगले प्रवचन में।
ॐ नमः। प्रवचन से प्रभावित होकर आचार्यश्री की जय बोलते हुए एक श्रोता ने भावुकतावश अवरुद्ध कंठ से कहा - "अहा! धन्य है, धन्य है; आचार्यश्री को धन्य है। आपने तो हमारी आँखें ही खोल दीं। हम तो अब तक प्राप्त पर्याय को सुखी बनाने और लौकिक समृद्धि में ही अपने जीवन की सफलता समझ रहे थे। इसकारण ज्योतिष और मंत्र-तंत्र बताने वालों के चक्कर में ही अब तक पड़े रहे।"
आचार्यश्री के प्रवचनों से यह जाना कि "ये सब तो पुण्य-पाप का खेल है। आत्मा का हित तो आत्मा के जानने-पहचानने में है। मैं इस जन्म के पहले भी था और मृत्यु के बाद भी रहँगा । अतः आज मैंने जाना कि मुझे अपने उज्ज्वल भविष्य के बारे में सोचना है।" धन्य है, आचार्यश्री! धन्य है मुनिसंघ! __अन्त में जिनवाणी और मुनिसंघ के जयकारे के साथ सभा विसर्जित
वर्षाऋतु का समय, उसमें भी श्रावण मास, इस कारण पानी का बरसना कोई नई बात नहीं है, परन्तु जब वर्षा थमती ही नहीं, लगातार दो-दो दिन तक सूरज का मुख दिखाई नहीं देता तब लोग घर से बाहर निकलने को तरस जाते हैं। जगह-जगह गड्ढ़े हो जाते हैं, उनमें पानी भर जाता है। जहाँ देखो वहाँ गलियारों में कीचड़ ही कीचड़ हो जाता है। चारों ओर हरियाली भी हो जाती है। ___ इन परिस्थितियों में सुविधा भोगी गृहस्थ कितनी भी अनुकूलतायें जुटा लें, फिर भी परेशान हो जाते हैं तो साधुओं की तो बात ही क्या; मुनि संघ को प्रतिष्ठापन समितिपूर्वक मल-मूत्र क्षेपण करने हेतु दूर-दूर तक कोई निर्जन्तुक जगह दिखाई नहीं देती तो श्रद्धावान श्रावक साधुओं की असुविधा देखकर चिन्तित हो जाते हैं। ___चातुर्मास समिति के बुजुर्ग श्रावकों को यह ज्ञात तो था कि अहिंसा महाव्रत और प्रतिष्ठापना समिति के नियमानुसार निर्जन्तुक स्थान में ही मलमूत्र क्षेपण करने का विधान है; परन्तु जब दूर-दूर तक ऐसा स्थान दिखाई नहीं देता हो तो ऐसी स्थिति में मुनिराज जायें तो जाँय कहाँ?
उनकी इस चिन्ता को देख मुनिचर्या से सर्वथा अनभिज्ञ मुनि संघ की चातुर्मास समिति का एक सदस्य बोला - "इसमें ऐसी क्या समस्या है? आप लोग व्यर्थ ही चिन्ता कर रहे हो। जब आज इतने अच्छे-अच्छे शौचालय के साधन उपलब्ध हैं तो संघ को बाहर जाने की क्या जरूरत है?"
समस्या तो सबके सामने थी ही, अतः यह जानते हुए भी कि संभवतः आचार्य श्री इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करेंगे फिर भी यह सोचने लगे कि यहीं शौचालयों की कोई अस्थाई व्यवस्था की जाय तो क्या हानि है?
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