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चैतन्य चमत्कार उपकार किया है। हर एक अध्यात्म प्रेमी जैन व अजैनों को यह ग्रन्थ उपकारी है। हर एक आत्मरस पिपासु की पिपासा इस ग्रन्थ घट में भरे हुए अमृत के पान से शान्त होगी।" अमरावती, २९.८.१९३४
ब्र. शीतल मैं पढ़ ही रहा था कि मेरा ध्यान आकर्षित करते हुए गुरुदेव बोले कि ये क्षुल्लक धर्मदासजी जयपुर के पास सवाई माधोपुर तालुका में बौंली गाँव के रहने वाले थे। खण्डेलवाल जाति के चूड़ीवाल गदिया थे। पिता का नाम श्रीलालजी व माता का नाम ज्वालाबाई था और इनका गृहस्थ अवस्था का नाम धन्नालाल था। यह उन्होंने अपनी स्वात्मानभवमनन' नामक पुस्तक की भूमिका में लिखा है।
इनकी येपुस्तकेंबहुत दिनोंसेपठन-पाठनकीवस्तुबन रही हैं। तीन-तीन बार छपचुकी हैं और सबमन्दिरों में मौजूद हैं।
प्रश्न : होंगी, इससे क्या? आपने चौथी बार तो छपाई?
उत्तर : हम तो पत्र भी नहीं लिखते । छपाने-वपाने का काम हमारा नहीं।
प्रश्न : यह तो ठीक, इसमें क्या । आपने न सही, आपके स्वाध्याय मन्दिर ट्रस्ट ने तो छपाई ?
उत्तर : उसने भी गुजराती छपाई थी। हिन्दी में तो भावनगर मुमुक्षु मण्डल से सात-आठ वर्ष पहले छपी थी।
सम्यग्ज्ञानदीपिका
प्रश्न : किसी भी मुमुक्षु मण्डल से छपी हो, हम तो वही समझते हैं कि आपने छपाई ?
उत्तर : यह अच्छा है, ऐसा क्यों?
प्रश्न : इसलिए, क्योंकि सभी मुमुक्षु मण्डल हैं तो आखिर आपके ही। आपकी आज्ञानुसार ही तो कार्य करते हैं।
उत्तर : अच्छी बात कही। मुमुक्षु मण्डल हमारे कैसे? हम तो किसी को कोई आज्ञा नहीं देते। क्या तुम यह समझते हो कि सब हम से पूछ-पूछकर कार्य करते हैं ? अरे ! हमें कहाँ इतनी फुर्सत कि इन झंझटों में फँसें ? सारे हिन्दुस्तान के सैकड़ों मुमुक्ष मण्डलों की बात तो दर. हम तो यहाँ रहकर भी ट्रस्ट का भी कुछ नहीं देखते । ये जानें रामजी भाई आदि।
प्रश्न : माना कि भावनगर मुमुक्षु मण्डल ने आपसे पूछकर नहीं छपाई, पर जब आपको पता चला था तब आपको मना तो करना था । यदि आप मना करते .....?
उत्तर : हम तो इन बातों में नहीं पड़ते। फिर हम क्यों मना करते? यह कोई खराब पुस्तक तो है नहीं। क्षुल्लकजी ने उसमें आत्मानुभव की बात अनेक उदाहरणों द्वारा समझाई है। वे तो सीधे सज्जन आध्यात्मिक पुरुष थे, उन्होंने तो अपनी सीधी-सादी भाषा में अनुभव की महिमा बताई है। वे क्या जानते थे कि भविष्य में ऐसे लोग भी निकलेंगे कि उनके द्वारा प्रतिपादित सीधे सच्चे भावों को तोड़-मरोड कर इस तरह प्रस्तुत करेंगे।
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