SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चैतन्य चमत्कार हमारे पास मौजूद है तथा सहारनपुर, भोपाल, खुरई आदि अनेक स्थानों के जिन-मन्दिरों में विद्यमान है। जब उन्होंने तत्काल उक्त पुस्तक मुझे दिखाई, तब मैंने उसे अच्छी तरहदेखा। उसके अंत में निम्नानुसार लिखा पाया - ___ “येह सम्यग्ज्ञानदीपिका नाम की पुस्तक हम बणाई है इसमें मूल हेतु मेरा येह है कि स्वयं ज्ञानमयी जीव जिस स्वभाव सै तन्मयि है उसी स्वभाव की स्वभावना जीव सै तन्मयि अचल होहु येही हेतु अंत:करण मै धारण करिकै येह पुस्तक बणाई है, ५०० (पाँच सौ) पुस्तक छापाके द्वारा प्रसिद्ध होणे की सहायता के अर्थ रुपया १०० (येक सौ) तो जिल्हा स्याहाबाद मुकाम आरा ठिकाणौं मखनलालजी की कोठी में बाबूविमलदासजी की विधवा हमारी चेली द्रौपदी ने दिया है।" इसमें उन्होंने पुस्तक बनाने का उद्देश्य तो स्पष्ट किया ही है। साथ ही पुस्तक छपाने में सहायता करने वालों की चर्चा तक कर दी है। ___ जब मैंने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा - न सही पहली बार, दूसरी बार तो आपने छपाई । तब वे बोले - दूसरी बार भी उन्होंने उसी प्रेस में उसके दो वर्ष बाद ही वि. सं. १९४८ में ५०० प्रतियाँ छपाई थीं। प्रश्न : तीसरी बार सही। सम्यग्ज्ञानदीपिका उत्तर : तीसरी बार भी आज से ४२ वर्ष पूर्व सन् १९३४ में अमरावती से हीरालाल बापूजी काले तथा सिंघई श्री कुन्दनलालजी परवार ने छपाई थी जिसकी भूमिका ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजी ने लिखी है। उक्त प्रति भी तत्काल उन्होंने मेरे सामने रख दी। मैंने ब्र. शीतलप्रसादजी द्वारा लिखितभूमिका देखी। उसमें लिखाथा - “मैंने इस पुन: मुद्रित ग्रन्थ को आद्योपान्त पढ़ा । यह ग्रन्थ आत्मज्ञान के मनन के लिए शुद्ध आत्मा की पृथक् पहचान के लिए बहत उपयोगी है। इस ग्रन्थ में सब वर्णन स्याबाद लक्षणमयी जिनवाणी के आधार से अनेकान्त स्वरूप है तथा जो अपूर्व अध्यात्मकथन श्री कन्दकन्दाचार्य ने श्री समयसार ग्रन्थ में किया है उसी का इसमें निचोड़ है।.... ..... एकान्त में मनन करने के लिए व अन्तरंग में आत्मज्योति के देखने के लिए यह सम्यग्ज्ञानदीपिका दीपक के समान बार-बार प्रकाश करने योग्य है, पढ़ने व मनन करने योग्य है। इस पुस्तक में धर्मदासजी महाराज ने सैकड़ों लौकिक दृष्टान्तों को देकर आत्मा को और उसके सम्यग्ज्ञानमयी प्रकाश को तन-मन-वचन व उनकी क्रियाओं से, द्रव्यकर्म, भावकर्म व नोकर्म से व सर्व जगत के प्रपंच से व पुद्गलादि पाँच द्रव्यों से भिन्न दिखाया है, बड़ा ही (10)
SR No.008346
Book TitleChaitanya Chamatkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size204 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy