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मैं ज्ञानानन्दस्वभावी हूँ मैं हूँ अपने में स्वयं पूर्ण,
पर की मुझ में कुछ गन्ध नहीं। मैं अरस, अरूपी, अस्पर्शी,
पर से कुछ भी सम्बन्ध नहीं ।। मैं रंग-राग से भिन्न, भेद से,
भी मैं भिन्न निराला हूँ। मैं हूँ अखण्ड, चैतन्यपिण्ड,
निज रस में रमने वाला हूँ।। मैं ही मेरा कर्ता-धर्ता,
मुझ में पर का कुछ काम नहीं। मैं मुझ में रहने वाला हूँ,
पर में मेरा विश्राम नहीं ।। मैं शुद्ध, बुद्ध, अविरुद्ध, एक
पर-परिणति से अप्रभावी हूँ। आत्मानुभूति से प्राप्त तत्त्व, मैं ज्ञानानन्दस्वभावी हूँ।।
- डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल
चैतन्य चमत्कार
- डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल