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छहढाला का सार
मोक्षमार्ग माने दुःखों से छूटने का उपाय। वह उपाय सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्ररूप है। वे दो प्रकार के होते हैं - एक निश्चय सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्र और दूसरे व्यवहार सम्यग्दर्शन-ज्ञानचारित्र । इसलिए अब तीसरी ढाल में इनकी चर्चा शुरू करते हैं।
देखो ! पहली ढाल में क्रम से चारों गतियों के दुःख बताये, दूसरी ढाल में अगृहीत मिथ्यादर्शन, अगृहीत मिथ्याज्ञान और अगृहीत मिथ्याचारित्र तथा गृहीत मिथ्यादर्शन, गृहीत मिथ्याज्ञान और गृहीत मिथ्याचारित्र – इनका स्वरूप समझाया। अब तीसरी ढाल में दुःखों से मुक्त होने का उपाय बताते हैं ।
दूसरी ढाल के अन्तिम पद्य में लिखा है -
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आतम-अनात्म के ज्ञानहीन, जे जे करनी तन करन छीन । आत्मा और अनात्मा का ज्ञान जिन्हें नहीं है, वे धर्म के नाम पर जो भी क्रिया करेंगे, वह सिर्फ शरीर को सुखाने के काम आयेगी, दुःख को मेटने के काम नहीं आयेगी। आत्मा और अनात्मा को समझे बिना उपवास करोगे तो वजन कम हो जायेगा। आज के जमाने में तो वह भी एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। लेकिन आत्मा और अनात्मा को समझे बिना आत्मा का कल्याण हो जाये यह सम्भव नहीं है।
यहाँ प्रारम्भ ही इस बात से करते हैं कि संसार में जितने जीव हैं, वे दु:खी हैं - यह बात तो सिद्ध ही है और वे दुःख से छूटना चाहते हैं - यह भी सिद्ध है; क्योंकि हमारा जरा-जरा सा प्रत्येक प्रयत्न भी दुःख से छूटने के लिए ही होता है।
आपने अभी-अभी आसन बदल लिया, क्यों बदला ? दर्द होने लगा इसलिए बदल लिया न समझ लो इतना सा प्रयत्न भी आपने दुःख दूर करने के लिए ही किया है। हम अपने पेट को खाली भी सुखी
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तीसरा प्रवचन
होने के लिए करते हैं और भरते भी सुखी होने के लिए हैं। कई बार भरा और कई बार खाली किया, लेकिन कभी सुखी नहीं । अब यह नक्की करो कि सुख किसमें है अर्थात् आत्मा का हित किसमें है ?
तीसरी ढाल में मोक्षमार्ग के रूप में सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र का निश्चय और व्यवहार से निरूपण है।
निश्चय का निरूपण तो मात्र तीन लाइनों में है, उसके बाद पूरी ढाल में जो भी वर्णन है, वह सब व्यवहार का निरूपण ही है।
व्यवहार के वर्णन में जीव तत्त्व में बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा की बात की। अजीव तत्त्व में छह द्रव्यों की चर्चा की। फिर आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा इनको एक-एक, दो-दो पंक्तियों में निपटाया । और अन्त में सम्यग्दर्शन और सच्चे देव शास्त्र - गुरु की बात कहकर सम्यग्दर्शन की महिमा बताई।
तीसरी ढाल की आरंभिक पंक्तियाँ इसप्रकार हैं
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आम को हित है सुख सो सुख, आकुलता बिन कहिये । आकुलता शिव मांहि न तातैं, शिव मग लाग्यौ चहिये ।। आत्मा का हित सुख में है और वह सुख जहाँ आकुलता नहीं हो, वहाँ होता है। आकुलता का नाम है दुःख और निराकुलता का नाम है सुख । आकुलता मोक्ष में नहीं है। इसलिए हमें मोक्ष के मार्ग में लगना चाहिये ।
पण्डित बनारसीदासजी लिखते हैं
जो बिनु ग्यान क्रिया अवगाहै, जो बिनु क्रिया मोखपद चाहै । बिनु है मैं सुखिया, सो अजान मूढ़नि मैं मुखिया ।। ' मूर्खों के सरदार तीन प्रकार के होते हैं। एक नंबर के वे जो बिना आत्मज्ञान के मोक्ष मानते हैं। दूसरे नंबर के वे जो बिना चारित्र के मोक्ष
१. नाटक समयसार, पृष्ठ १३६