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________________ ४० छहढाला का सार मिथ्याचारित्र है। लोग कहते हैं कि पाँच इन्द्रियों के विषयों में प्रवृत्ति का नाम मिथ्याचारित्र है। __इस पंक्ति में एक शब्द आया है - ‘इन जुत' इसका अर्थ क्या है ? इसपर कोई ध्यान नहीं देता है। इसका अर्थ है कि मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान के साथ में होनेवाली पाँच इन्द्रियों के विषयों में प्रवृत्ति मिथ्याचारित्र कहलाता है। सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान हो और विषयों की प्रवृत्ति हो तो वह मिथ्याचारित्र नहीं है। सम्यग्दृष्टि की जो पाँच इन्द्रियों के विषयों में प्रवृत्ति है, उसका नाम मिथ्याचारित्र नहीं, असंयम है। यदि सम्यग्दृष्टि धर्मात्माओं की पंचेन्द्रिय विषयों में प्रवृत्ति को मिथ्याचारित्र मानेंगे तो फिर भरतचक्रवर्ती, सौधर्मादि इन्द्र और गृहस्थ अवस्था में स्थित राजा ऋषभदेव आदि को भी अगृहीत मिथ्याचारित्रवाला मानना होगा, जो कदापि संभव नहीं है। अब गृहीत मिथ्याचारित्र की बात करते हैं - जो ख्याति लाभ पूजादि चाह, धरि करन विविध विध देहदाह । अपनी प्रसिद्धि के लिए, लौकिक लाभ, प्रतिष्ठा, सम्मान आदि की चाह से व्रतादिक का पालन करना, धर्म के नाम पर शरीर को कष्ट देनेवाली अनेक क्रियायें करना गृहीत मिथ्याचारित्र है। इसतरह से गृहीत मिथ्यादर्शन-ज्ञान-चारित्र और अगृहीत मिथ्यादर्शन-ज्ञान-चारित्र का निरूपण छहढाला की दूसरी ढाल में किया है और यह बताया कि ये ही इस जीव के दुःखों का कारण हैं। तीसरा प्रवचन तीन भुवन में सार, वीतराग-विज्ञानता। शिवस्वरूप शिवकार, नम त्रियोग सम्हारिकै।। अभी तक हुये दो प्रवचनों में छहढाला की दो ढालों पर चर्चा हुई; जिनमें संसार में सर्वत्र दुःख ही दुःख है - यह पहली ढाल में और उस दु:ख का कारण गृहीत और अगृहीत मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान और मिथ्याचारित्र हैं - यह दूसरी ढाल में बताया गया है। अब तीसरी ढाल में उन दुःखों से मुक्त होने का उपाय बताया जाता है। उक्त कथनशैली का औचित्य सिद्ध करते हुये पण्डित टोडरमलजी ने एक उदाहरण दिया है; उसमें कहा है कि जिसप्रकार वैद्य रोगी की नाड़ी देखकर कहता है कि तुझे पेट में दर्द होता है, नींद अच्छी नहीं आती है, रात को बुखार हो जाता है ? वह पूछता जाता और मरीज हाँ-हाँ करता जाता। वास्तव में तकलीफ तो रोगी को है, उसे बतानी चाहिए; किन्तु वैद्य विश्वास पैदा करने के लिये ऐसा करता है। रोगी सोचता है कि वैद्य ने जब बिना बताये, मात्र नाड़ी देखकर मेरी तकलीफ पहचान ली है; तब इसका इलाज भी सही होगा। फिर वह वैद्य बड़े ही करुणाभाव से कहता है कि तुम्हें यह तकलीफ इसलिए हुई कि तुमने अनाप-शनाप खाना खाया है, मांस-मदिरा का सेवन किया है, दिन-रात भखा है, खाने-पीने का ध्यान नहीं रखा है, बदपरहेजी की है। तब वह सोचता है कि यह वैद्य कितना जानकार है। इसने तो बिना बताये ही सबकुछ जान लिया। इसप्रकार वैद्य के प्रति विश्वास हो जाने से मरीज उसके (21)
SR No.008345
Book TitleChahdhala Ka sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherDigambar Jain Vidwatparishad Trust
Publication Year2007
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Karma
File Size237 KB
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