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________________ छहढाला चौथी ढाल अन्वयार्थ :- (धन) पैसा, (समाज) परिवार, (गज) हाथी, (बाज) घोड़ा (राज) राज्य (तो) तो (काज) अपने काम में (न आवै) नहीं आते; किन्तु (ज्ञान) सम्यग्ज्ञान (आपको रूप) आत्मा का स्वरूप - [जो] (भये) प्राप्त होने के (फिर) पश्चात् (अचल) अचल (रहावै) रहता है। (तास) उस (ज्ञान को) सम्यग्ज्ञान का (कारन) कारण (स्व-पर विवेक) आत्मा और पर-वस्तुओं का भेदविज्ञान (बखानौ) कहा है, [इसलिये] (भव्य) हे भव्यजीवो! (कोटि) करोड़ों (उपाय) उपाय (बनाय) करके (ताको) उस भेदविज्ञान को (उर आनौ) हृदय में धारण करो। भावार्थ :- धन-सम्पत्ति, परिवार, नौकर-चाकर, हाथी, घोड़ा तथा राज्यादि कोई भी पदार्थ आत्मा को सहायक नहीं होते; किन्तु सम्यग्ज्ञान आत्मा का स्वरूप है। वह एकबार प्राप्त होने के पश्चात् अक्षय हो जाता है - कभी नष्ट नहीं होता, अचल एकरूप रहता है। आत्मा और परवस्तुओं का भेदविज्ञान ही उस सम्यग्ज्ञान का कारण है; इसलिये प्रत्येक आत्मार्थी भव्यजीव को करोड़ों उपाय करके उस भेदविज्ञान के द्वारा सम्यग्दर्शन प्राप्त करना चाहिए। सम्यग्ज्ञान की महिमा और विषयेच्छा रोकने का उपाय जे पूरब शिव गये, जाहिं, अरु आगे जैहैं। सो सब महिमा ज्ञान-तनी, मुनिनाथ कहै हैं ।। विषय-चाह दव-दाह, जगत-जन अरनि दझावै। तास उपाय न आन, ज्ञान-घनघान बुझावै ।।८।। अन्वयार्थ :- (पूरब) पूर्वकाल में (जे) जो जीव (शिव) मोक्ष में (गये) गये हैं, [वर्तमान में] (जाहि) जा रहे हैं (अस) और (आगे) भविष्य में (जैहैं) जायेंगे (सो) वह (सब) सब (ज्ञान-तनी) सम्यग्ज्ञान की (महिमा) महिमा है - ऐसा (मुनिनाथ) जिनेन्द्रदेव ने (कहे हैं) कहा है। (विषय-चाह) पाँच इन्द्रियों के विषयों की इच्छारूपी (दव-दाह) भयंकर दावानल (जगत-जन) संसारी जीवोंरूपी (अरनि) अरण्य-पुराने वन को (दझावै) जला रहा है, (तास) उसकी शान्ति का (उपाय) उपाय (आन) दूसरा (न) नहीं है; [मात्र] (ज्ञान-घनघान) ज्ञानरूपी वर्षा का समूह (बुझावै) शान्त करता है। भावार्थ :- भूत, वर्तमान और भविष्य - तीनों काल में जो जीव मोक्ष को प्राप्त हुए हैं, होंगे और (वर्तमान में विदेह-क्षेत्र में) हो रहे हैं; वह इस सम्यग्ज्ञान का ही प्रभाव है - ऐसा पूर्वाचार्यों ने कहा है। जिसप्रकार दावानल (वन में लगी हुई अग्नि) वहाँ की समस्त वस्तुओं को भस्म कर देता है, उसीप्रकार पाँच इन्द्रियों सम्बन्धी विषयों की इच्छा संसारी जीवों को जलाती है - दुःख देती है; और जिसप्रकार वर्षा की झड़ी उस दावानल को बुझा देती है, उसीप्रकार यह सम्यग्ज्ञान उन विषयों को शान्त कर देता है - नष्ट कर देता है। 46
SR No.008344
Book TitleChahdhala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Karma
File Size326 KB
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