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________________ ४१ से ७३ ८३-८४ ८५-८६ तीसरी ढाल आत्महित, सच्चा सुख तथा दो प्रकार से मोक्षमार्ग का कथन निश्चयसम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र का स्वरूप व्यवहारसम्यक्त्व का स्वरूप जीव के भेद, बहिरात्मा और उत्तम अन्तरात्मा मध्यम और जघन्य अन्तरात्मा तथा सकल परमात्मा निकल परमात्मा का लक्षण तथा परमात्मा के ध्यान का उपदेश अजीव - पुद्गल, धर्म और अधर्म के लक्षण तथा भेद आकाश, काल और आस्रव के लक्षण तथा भेद । आस्रवत्याग का उपदेश, बन्ध, संवर, निर्जरा का लक्षण मोक्ष का लक्षण, व्यवहारसम्यक्त्व का लक्षण तथा कारण सम्यक्त्व के पच्चीस दोष तथा आठ गुण सम्यक्त्व के आठ गुण और शंकादि आठ दोष मद नामक आठ दोष छह अनायतन और तीन मूढ़ता दोष अव्रती सम्यग्दृष्टि की इन्द्रादि द्वारा पूजा और गृहस्थपने में अप्रीति सम्यक्त्व की महिमा, सम्यग्दृष्टि के अनुत्पत्ति स्थान तथा सर्वोत्तम सुख और सर्वधर्म का मूल सम्यग्दर्शन के बिना ज्ञान और चारित्र का मिथ्यापना तीसरी ढाल का सारांश : भेद-संग्रह, लक्षण-संग्रह, अन्तर-प्रदर्शन एवं प्रश्नावली चौथी ढाल सम्यग्ज्ञान का लक्षण और उसका समय सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान में अन्तर सम्यग्ज्ञान के भेद, परोक्ष और देशप्रत्यक्ष के लक्षण सकलप्रत्यक्ष ज्ञान का लक्षण और ज्ञान की महिमा ज्ञानी और अज्ञानी के कर्मनाश में अन्तर ज्ञान के दोष और मनुष्यपर्याय आदि की दुर्लभता सम्यग्ज्ञान की महिमा और कारण सम्यग्ज्ञान की महिमा और विषयेच्छा रोकने का उपाय (vi) पुण्य-पाप में हर्ष-विषाद का निषेध, तात्पर्य की बात सम्यक्चारित्र का समय और भेद, अहिंसा तथा सत्याणुव्रत अचौर्य ब्रह्मचर्य-परिग्रहपरिमाण अणुव्रत तथा दिव्रत देशव्रत (देशावकाशिक) नामक गुणव्रत अनर्थदण्डव्रत के भेद और उनका लक्षण सामायिक, प्रौषध, भोगोपभोगपरिमाण और अतिथिसंविभाग व्रत निरतिचार श्रावकव्रत पालने का फल चौथी ढाल का सारांश : भेद-संग्रह, लक्षण-संग्रह, अन्तर-प्रदर्शन एवं प्रश्नावली १३-१०० पाँचवीं ढाल १०२ से १२० भावनाओं के चिन्तवन का कारण, उसके अधिकारी और उसका फल १०२ भावनाओं का फल और मोक्षसुख की प्राप्ति का समय १०२-१०३ अनित्य, अशरण, संसार, एकत्वभावना, अन्यत्व, अशुचिभावना, आसव, संवर, निर्जरा, लोकभावना, बोधिदुर्लभ एवं धर्मभावना १०३ से ११४ आत्मानुभवपूर्वक भावलिंगी मुनि का स्वरूप पाँचवीं ढाल का सारांश : भेद-संग्रह, लक्षण-संग्रह, अन्तर-प्रदर्शन एवं प्रश्नावली ११५-१२० छठवीं ढाल १२१ से १५२ अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य महाव्रत के लक्षण १२१ परिग्रहत्याग महाव्रत, ईर्यासमिति, भाषासमिति १२३ एषणा, आदान-निक्षेपण और प्रतिष्ठापन समिति १२५ तीन गुप्ति और पाँच इन्द्रियों पर विजय १२६-१२७ मुनियों के छह आवश्यक और शेष सात मूलगुण १२८ मुनियों के शेष गुण तथा राग-द्वेष का अभाव । १२९-१३० मुनियों के तप, धर्म, विहार तथा स्वरूपाचरण चारित्र शुद्धोपयोग का वर्णन १३४ स्वरूपाचरण चारित्र का लक्षण और निर्विकल्प ध्यान स्वरूपाचरण चारित्र और अरहन्तदशा सिद्धदशा (सिद्ध स्वरूप) का वर्णन मोक्षदशा का वर्णन १४१ रत्नत्रय का फल और आत्महित में प्रवृत्ति का उपदेश १४२ अन्तिम सीख ग्रन्थ-रचना का काल और उसमें आधार छठवीं ढाल का सारांश : भेद-संग्रह, लक्षण-संग्रह, अन्तर-प्रदर्शन एवं प्रश्नावली १४५-१५२ ६४-६५ ६६-७२ ७४-१०१ ७४-७५ १४३ ८२-८३ (vii)
SR No.008344
Book TitleChahdhala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Karma
File Size326 KB
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