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________________ समता और ममता बुधजन सतसई समता अपनी नारि संग, नित सुख निरभय होय । भय क्लेश करनी विपत, ममता परकी जोय ।।५४९।। ममता संग अनादि की, करे अनंत फैल। जब जिय गुरु संगति करे, तब या छांड़े गैल ।।५५०।। ममता बेटी पाप की, नरक-सदन ले जाय । धर्म सुता समता जिको, सुरगमुकति सुखदाय ।।५५१।। ममता समता की करो, निज घटमाहिं पिछान । बुरी तजो आछी भजो, जो तुम हो बुधिमान ।।५५२।। जाकी संगति दुख लहो, ताकी तजो न गैल । तो तुमको कहिये कहा, ज्योंके त्यों हो बैल ।।५५३।। पूर्व कमाया सो लिया, कहा कियें होय कास' । अब करनी ऐसी करो, परभव होय खुस्यास ।।५५४।। जैसे यहाँ तैसे वहाँ, बरतत है सब व्याध । ज्यों अब यहाँ साधन करो, त्यों ही परभव साध ।।५५५।। याही भव में रचि रहे, परभव करो न याद। चाले रीते होय के, क्या खाओगे खाद ।।५५६।। जोलों काय कटे नहीं, रहे भूख की व्याध । परमारथ स्वारथतना, तोलों साधन साध ।।५५७।। सरते में करते नहीं, करते रहे विचार । परनिर छोड़ी बापके, फिर पछतात गँवार ।।५५८।। १. स्त्री, २. बुरे कार्य, ३.साथ, ५. दुःख, ६. सुख, ७. भोजन, ८. ब्याह करके अहिनिश प्रानी जगत के, चले जात जमथान । शेषा' थिरता गहि रहे, ए अचरज अज्ञान ।।५५९।। नागा चलना होयगा, कछु न लागे लार। लार लेन का है मता', तो ठानो' दातार ।।५६०।। नरनारी मोहे गये, कंचन कामिनि माहिं। अविचल सुख तिन ही लिया, जो इनके बस नाहिं ।।५६१।। मिथ्या रुज नाश्यो नहीं, रह्या हिया में वास । लीयो तप द्वादश वरस, किया द्वारिका नाश ।।५६२।। कहा होत विद्या पढ़े, विन प्रतीति विचार । अभविसेन संज्ञा लई, कीनो हीनाचार ।।५६३।। विना पढ़े प्रतीति गहि, राख्यो गाढ़ अपार । याद करत तुष-माष को, उतर गये भवपार ।।५६४।। आपा-पर-सरधान विन, मधुपिंगल मुनिराय । तप खोया बोयो जनम, रोयो नरक मंझार ।।५६५।। कोप्या मुनि उपसर्ग सुनि, लोप्यो नृप पुर देश । कीनो दंडकवन विषम, लीनो नरकप्रवेश ।।५६६।। सुख माने भाने धरम, जोवनधनमद अंध । माल जानि अहिको गहे, लहे विपति मतिअंध ।।५६७।। भोग व्यसन सुख ख्याल में, दई मनुषगति खोय। ज्यों कपूत खा तात धन, विपता भोगे रोय ।।५६८।। १. बचे हुये, २. इरादा, ३. बनो, ४. रोग, ५. श्रद्धा, ७. नष्ट किया, ८. नष्ट किया ४. मूर्ख, ६. ज्ञान,
SR No.008343
Book TitleBudhjan Satsai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBudhjan Kavivar
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size242 KB
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