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________________ उपदेशाधिकार बुधजन सतसई असन औषधी भूख की, वसन औषधी सीत। भला बुरा नहिं जोइये', हरजे बाधा मीत ।।३७६।। खाना पीना सोवना, पुनि लघु दीरघ व्याधि । राव रंकके एक सी, एती क्रिया असाधि ।।३७७।। वाही बुधि धन जात है, वाही बुधिते आत । जिनस' व्याज विनजत बधे, ताही करते जात ॥३७८।। पंडित भावो मूढ़ हो, सुखिया मंद कषाय । माठो मोटो है बलध, ताती दुबरी गाय ।।३७९।। बंधे भोग कषायतें, छुटे भक्ति वैराग । इनमें जो आछा लगे, ताही मारग लाग ।।३८०।। दुष्ट दुष्टता ना तजे, निंदत हू हर कोय । सुजन सुजनता क्यों तजे, जगजस निजहित होय ।।३८१।। दुष्ट भलाई ना करे, किये कोटि उपकार । सर्पन दूध पिलाइये, विषही के दातार ।।३८२।। दुष्ट संग नहिं कीजिये, निश्चय नाशे प्रान । मिले ताहि जारे अगनि, भली बुरी न पिछान ।।३८३।। दुष्ट कही सुनि चुप रहो, बोले है है हान । भाटा' मारे कीचमें, छींटे लागे आन ।।३८४।। कंटक अर दुष्ट का, और न बने उपाय । पग पनही तर दाबिये, नातर खटकत आय ।।३८५।। १. देखिये, २. बाधा मिटा लीजिये, ३. लघुशंका, ४. दीर्घशंका, ५. अनाज, ६. ठंडा-गरियाल, ७. गरम-तेज, ८. पत्थर, ९. जूते के नीचे, १०. नहीं तो मन तुरंग चंचल मिल्या, बाग हाथ में राखि। जा छिन ही गाफिल रहो, ताछिन डारे नाखि ।।३८६।। मन विकल्प ऐते करे, पलके गिने न कोय । याके किये न कीजिये, कीजे हित है जोय ।।३८७।। पवन थकी देवनथकी, मनकी दौड़ अपार । डूबे जीव अनंत हैं, याकी लागे लार ।।३८८।। मन लागे अवकास दे, तब करतब बन जाय । मन विन जाप जपेवृथा, काज सिद्ध नहिं थाय ।।३८९।। जैसे तैसे जतन करि, जो मन लेत लगाय। पुनि जो जो कारज चतुर, करे सु ही बन जाय ।।३९०।। जिनका मन वसिमें नहीं, चाले न्याय अन्याय । ते नर व्याकुल विकल है, जगत निंदता पाय ।।३९१।। बड़े भागते मन रतन, मिल्यो राखिये पास । जहाँ तहाँ के खोलते, तन धन होत विनास ।।३९२।। तनते मन दीरघ घनो, लांबो अर गंभीर । तन नाशे नाशे न मन, लड़ती विरियां वीर ।।३९३।। मन माफिक चाले न जब, तब सुतको तज देत । मन साधनकरता निरखि, करत आनते हेत ।।३९४।। तनकी दौड़ प्रमानते, मनकी दौड़ अपार । मन बढ़करि घटि जात है, घटे न तनविस्तार ।।३९५।। १. लगाम, ३. कार्य, २. पलभर के विकल्पों को कोई गिन नहीं सकता, ४. देखकर
SR No.008343
Book TitleBudhjan Satsai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBudhjan Kavivar
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size242 KB
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