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३१ हजार ४००
प्रथम आठ संस्करण (३१ अगस्त १९८४ से अद्यतन) नवम संस्करण (१२ जुलाई, २००६) योग
२हजार
३३हजार ४००
प्रकाशकीय
(नवम् संस्करण) भक्तामर प्रवचन का यह नवीन संस्करण प्रकाशित करते हुए हमें हार्दिक प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। यह कृति जैन समाज में सर्वाधिक प्रचलित 'भक्तामर स्तोत्र' पर हुए आध्यात्मिकसत्पुरुष श्री कानजी स्वामी के आध्यात्मिक प्रवचनों का हिन्दी भाषा में अनुवादित संकलन है।
पूज्य श्री कानजी स्वामी के 'भक्तामर स्तोत्र' के प्रवचनों का संकलन सर्वप्रथम गुजराती भाषा में हुआ। उक्त प्रवचनों के आधार पर स्व. पण्डित बंशीधरजी शास्त्री ने उसका हिन्दी में अनुवाद प्रारंभ किया। कुछ काव्यों के प्रवचनों का ही अनुवाद हो पाया था कि पण्डित बंशीधरजी अस्वस्थ हो गये फिर आगे के काव्यों का अनुवाद और सम्पूर्ण स्तोत्र के प्रवचनों का सम्पादन पण्डित रतनचन्दजी भारिल्ल ने स्वयं किया। इन प्रवचनों का सर्वप्रथम धारावाहिक प्रकाशन जनवरी १९८२ से अप्रेल १९८४ तक जैनपथ प्रदर्शक में होता रहा। बाद में पाठकों की मांग पर पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया।
पूज्य श्री कानजी स्वामी द्वारा विवेचित आध्यात्मिक विषयों के प्रकाशन तो बहुलता के साथ होते रहे, परन्तु उनके द्वारा विवेचित व्यावहारिक विषयों के प्रकाशन बहुत कम हुए, जिसके कारण समाज में कुछ भ्रान्तियाँ भी खड़ी हुईं।
यद्यपि उनके जीवन का व्यवहार एक खुली किताब की भाँति स्पष्ट था, तथापि उनकी प्रवचन शैली में अध्यात्म की मुख्यता होने से लोगों को ऐसा लगा कि श्री कानजी स्वामी व्यवहार धर्म की उपेक्षा करते हैं। उक्त भ्रमों के निवारणार्थ ये भक्तिप्रधान प्रवचन अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हुए हैं।
पण्डित रतनचन्दजी भारिल्ल ने इसके सम्पादन का गुरुतर भार वहन करते हुए इसकी प्रस्तावना लिखने का श्रम किया है। एतदर्थ वे धन्यवाद के पात्र हैं।
भक्तामर स्तोत्र के सम्बन्ध में पण्डित रतनचन्दजी भारिल्ल द्वारा लिखी गई
मूल्य : पन्द्रह रुपये
मुद्रक : प्रिन्ट 'ओ' लैण्ड बाईस गोदाम, जयपुर