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________________ पाठ पहला | देव-दर्शन संकल्प - 'भगवान बनेंगे' सम्यग्दर्शन प्राप्त करेंगे। सप्तभयों से नहीं डरेंगे।। सप्त तत्त्व का ज्ञान करेंगे। जीव-अजीव पहिचान करेंगे।। स्व-पर भेदविज्ञान करेंगे। निजानन्द का पान करेंगे।। पंच प्रभु का ध्यान धरेंगे। गुरुजन का सम्मान करेंगे। जिनवाणी का श्रवण करेंगे। पठन करेंगे, मनन करेंगे। रात्रि भोजन नहीं करेंगे। बिना छना जल काम न लेंगे।। निजस्वभाव को प्राप्त करेंगे। मोह भाव का नाश करेंगे। रागद्वेष का त्याग करेंगे। और अधिक क्या? बोलो बालक! भक्त नहीं, भगवान अति पुण्य उदय मम आया, प्रभु तुमरा दर्शन पाया। अब तक तुमको बिन जाने, दुख पाये निज गुण हाने ।। पाये अनंते दुख अब तक, जगत को निज जानकर । सर्वज्ञ भाषित जगत हितकर, धर्म नहिं पहिचान कर ।। भव बंधकारक सुखप्रहारक, विषय में सुख मानकर । निज पर विवेचक ज्ञानमय, सुखनिधि-सुधा नहिं पान कर ।।१।। तब पद मम उर में आये, लखि कुमति विमोह पलाये। निज ज्ञान कला उर जागी, रुचि पूर्ण स्वहित में लागी।। रचि लगी हित में आत्म के, सतसंग में अब मन लगा। मन में हुई अब भावना, तव भक्ति में जाऊँ रंगा ।। प्रिय वचन की हो टेव, गुणिगण गान में ही चित्त पगै। शुभ शास्त्र का नित हो मनन, मन दोष वादन” भग।।२।। कब समता उर में लाकर, द्वादश अनुप्रेक्षा भाकर। ममतामय भूत भगाकर, मुनिव्रत धारूं वन जाकर ।। धरकर दिगम्बर रूप कब, अठ-बीस गण पालन करूँ। दो-बीस परिषह सह सदा, शुभ धर्म दश धारन करूँ ।। तप तप॑ द्वादश विधि सुखद नित, बंध आश्रव परिहीं। अरु रोकि नूतन कर्म संचित, कर्म रिपकों निर्जरूँ ।।३।।
SR No.008341
Book TitleBalbodh 1 2 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages43
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size144 KB
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