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पाठ दूसरा
| चार मंगल
जो मोह-राग-द्वेषरूपी पापों को गलावे और सच्चा सुख उत्पन्न करे, उसे मंगल कहते हैं। अरहंतादिक स्वयं मंगलमय हैं और उनमें भक्तिभाव होने से परम मंगल होता है।
लोक में चार उत्तम हैं। अरहंत भगवान उत्तम हैं, सिद्ध भगवान उत्तम हैं, साधु (आचार्य, उपाध्याय और साधु) उत्तम हैं तथा केवली भगवान द्वारा बताया हुआ वीतराग धर्म उत्तम हैं।
लोक में जो सबसे महान हो, उसे उत्तम कहते हैं। लोक में ये चारों सबसे महान हैं, अत: उत्तम हैं। ___ मैं चारों की शरण में जाता हूँ। अरहंत भगवान की शरण में जाता हूँ, सिद्ध भगवान की शरण में जाता हूँ, साधुओं (आचार्य, उपाध्याय, और साधु) की शरण में जाता हूँ और केवली भगवान द्वारा बताये गये वीतराग धर्म की शरण में जाता हूँ।
शरण सहारे को कहते हैं। पंचपरमेष्ठी द्वारा बताये हुए मार्ग पर चलकर अपनी आत्मा की शरण लेना ही पंचपरमेष्ठी की शरण है।
जो व्यक्ति पंचपरमेष्ठी की शरण लेता है उसका कल्याण होता है अर्थात् दुःख (भव-भ्रमण) मिट जाता है।
चत्तारि मंगलं, अरहंता मंगलं, सिद्धा मंगलं, साहू मंगलं, केवलिपण्णत्तो धम्मो मंगलं।
चत्तारि लोगुत्तमा, अरहंता लोगुत्तमा, सिद्धा लोगुत्तमा, साहू लोगुत्तमा, केवलिपण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमो।
चत्तारि सरणं पव्वजामि, अरहते सरणं पव्वजामि, सिद्धे सरणं पव्वज्जामि, साहू सरणं पव्वजामि, केवलिपण्णत्तं धम्मं शरणं पव्वज्जामि। ___लोक में चार मंगल हैं। अरहंत भगवान मंगल हैं, सिद्ध भगवान मंगल हैं, साधु (आचार्य, उपाध्याय और साधु) मंगल हैं तथा केवली भगवान द्वारा बताया गया वीतराग धर्म मंगल है।
प्रश्न -
१. मंगल, उत्तम और शरण शब्द का अर्थ समझाइये। २. हमें किसकी शरण लेना चाहिए? ३. आत्मा का हित किस बात में है? ४. चत्तारि मंगलं आदि पाठ को शुद्ध बोलिए। ५. पंचपरमेष्ठी की शरण का क्या अर्थ है ?