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________________ छात्र जो तीन लोक और तीन काल के समस्त पदार्थों को एक साथ जाने, वही भगवान है। - आखिर दुनियाँ में जो कार्य होते हैं, उनका कर्ता कोई तो होगा? अध्यापक प्रत्येक द्रव्य अपनी-अपनी पर्याय (कार्य) का कर्ता है। कोई किसी का कर्ता नहीं है, ऐसी अनंत स्वतंत्रता द्रव्यों के स्वभाव में पड़ी हुई है। उसे जो पहिचान लेता है, वही आगे चलकर भगवान बनता है। प्रश्न - १. द्रव्य किसे कहते हैं ? वे कितने प्रकार के होते हैं ? नाम गिनाइये । २. विश्व किसे कहते हैं, इसे बनाने वाला कौन है ? भगवान क्या करते हैं? ३. प्रत्येक द्रव्य की अलग-अलग संख्या लिखें। ४. परिभाषा लिखिए - धर्म द्रव्य, अधर्म द्रव्य, आकाश द्रव्य और काल द्रव्य । ५. इन्द्रियों की पकड़ में आने वाले द्रव्य को समझाइये | ६. आत्मा का स्वभाव क्या है ? वह इन्द्रियों से क्यों नहीं जाना जा सकता है ? ७. अजीव और अरूपी द्रव्यों को गिनाइये । पाठ में आये हुए सूत्रात्मक सिद्धान्त वाक्य १. द्रव्यों के समूह को विश्व कहते हैं । २. यह लोक (विश्व) अनादि अनन्त स्वनिर्मित है। २८ ३. गुणों के समूह को द्रव्य कहते हैं। ४. जिसमें स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण पाया जाये, वही पुद्गल है। ५. जिसमें ज्ञान पाया जाय, वही जीव है। ६. धर्म द्रव्य - स्वयं चलते हुए जीवों और पुद्गलों की गति में निमित्त । ७. अधर्म द्रव्य - गमनपूर्वक ठहरने वाले जीवों और पुद्गलों के ठहरने में निमित्त । ८. आकाश द्रव्य सब द्रव्यों के अवगाहन में निमित्त । ९. काल द्रव्य सब द्रव्यों के परिवर्तन में निमित्त । १०. सब द्रव्य अपनी-अपनी पर्यायों के कर्ता हैं, कोई भी पर का कर्ता नहीं है। ११. भगवान लोक को जानने वाला है, बनाने वाला नहीं। १२. जीव को छोड़कर बाकी पाँच द्रव्य अजीव हैं। १३. पुद्गल को छोड़कर बाकी पाँच द्रव्य अरूपी हैं। १४. इन्द्रियाँ रूपी पुद्गल को जानने में ही निमित्त हो सकती हैं, आत्मा को जानने में नहीं । २९
SR No.008341
Book TitleBalbodh 1 2 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages43
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size144 KB
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