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पाठ छठवाँ
| द्रव्य
प्रश्न - १. गति किसे कहते हैं ? वे कितने प्रकार की होती हैं ? २. तिर्यञ्चगति किसे कहते हैं ? ३. नरकगति के वातावरण का वर्णन कीजिए। ऐसे कौन-से कारण हैं
जिनसे जीव नरकगति प्राप्त करता है ? ४. क्या देवगति में भी सुख नहीं है ? सकारण उत्तर दीजिए। ५. सबसे अच्छी गति कौन-सी है ? युक्तिसंगत उत्तर दीजिए। पाठ में आये हुए सूत्रात्मक सिद्धान्त वाक्य - १. जीव की अवस्था विशेष को गति कहते हैं। २. जीव कहीं से मरकर मनुष्य-शरीर धारण करता है, उसे मनुष्यगति
कहते हैं। ३. जीव कहीं से मरकर तिर्यञ्च-शरीर धारण करता है, उसे तिर्यञ्चगति
कहते हैं। ४. जीव कहीं से मरकर नारकी-शरीर धारण करता है, उसे नरकगति
कहते हैं। ५. जीव कहीं से मरकर देव-शरीर धारण करता है, उसे देवगति कहते
छात्र - गुरुजी, अम्मा कहती थी कि जो हमें दिखाई देता है,
वह तो सब पुद्गल है। यह पुद्गल क्या होता है ? अध्यापक - ठीक तो है। हमें आँखों से तो सिर्फ वर्ण (रंग) ही
दिखाई देता है और वह मात्र पुद्गल में ही पाया जाता है।
जिसमें स्पर्श, रस, गंध और वर्ण पाया जाय,
उसे पुद्गल कहते हैं। यह अजीव द्रव्य है। छात्र - द्रव्य किसे कहते हैं ? वे कितने प्रकार के हैं ? अध्यापक - गुणों के समूह को द्रव्य कहते हैं। वे छह प्रकार के हैं -
जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल। छात्र - तो क्या द्रव्यों में अजीव नहीं है ? अध्यापक - जीव को छोड़कर बाकी सब द्रव्य अजीव ही तो हैं।
जिनमें ज्ञान पाया जाय वे ही जीव हैं। बाकी सब
अजीव। छात्र - जब द्रव्य छह प्रकार के हैं तो हमें दिखाई केवल पुद्गल
ही क्यों देता है? अध्यापक - क्योंकि इन्द्रियाँ रूप, रस आदि को ही जानती हैं और
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६. जीव अपनी आत्मा को पहिचान कर उसकी साधना द्वारा चतुर्गति
के दुःखों से छूटकर सिद्धपद पा लेता है, उसे पंचमगति कहते हैं। ७. एक वीतराग भाव ही पंचमगति (मोक्ष) का कारण है। वीतराग
भाव प्राप्त करने के लिए ज्ञानस्वभावी आत्मा का आश्रय लेना चाहिए।