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पाठ चौथा |
सदाचार बाल-सभा
१. कषाय किसे कहते हैं ? कषाय को विभाव क्यों कहा? २. कषाय से हानि क्या है ? ३. क्या कषाय आत्मा का स्वभाव है ? ४. कषायें कितनी होती हैं ? नाम बताइये। ५. कषायें क्यों उत्पन्न होती हैं ? वे कैसे मिटें? ६. आत्मा का स्वभाव क्या है ? पाठ में आये हुए सूत्रात्मक सिद्धान्त वाक्य - १. जो आत्मा को कसे अर्थात् दुःखी करे, उसे कषाय कहते हैं। २. कषाय राग-द्वेष का दूसरा नाम है। ३. कषाय आत्मा का विभाव है, स्वभाव नहीं। ४. आत्मा का स्वभाव जानना-देखना है। ५. क्रोध गुस्सा को कहते हैं। ६. मान घमण्ड को कहते हैं। ७. माया छल-कपट को कहते हैं। ८. किसी वस्तु को देखकर प्राप्ति की इच्छा होना ही लोभ है। ९. मुख्यतया मिथ्यात्व के कारण परपदार्थ इष्ट और अनिष्ट भासित
होने से कषाय उत्पन्न होती हैं। १०. तत्त्वज्ञान के अभ्यास से जब परपदार्थ इष्ट और अनिष्ट भासित
न हों तो मुख्यतया कषाय भी उत्पन्न न होगी।
(कक्षा चार के बालकों की एक सभा हो रही है। बालकों में से ही एक को अध्यक्ष बनाया गया है। वह कुर्सी पर बैठा है।) अध्यक्ष - (खड़े होकर) अब आपके सामने शान्तिलाल एक
कहानी सुनायेंगे। शान्तिलाल - (टेबल के पास खड़े होकर) माननीय अध्यक्ष महोदय
एवं सहपाठी भाइयो और बहिनो !
अध्यक्ष महोदय की आज्ञानुसार मैं आपको एक शिक्षाप्रद कहानी सुनाता हूँ। आशा है आप शान्ति से सुनेंगे।
एक बालक बहुत हठी था। वह खाने-पीने का लोभी भी बहुत था। जब देखो तब अपने घर पर अपने भाई-बहिनों से जरा-जरा-सी चीजों पर लड़ पड़ता था, उसकी माँ उसे बहुत समझाती पर वह न मानता।
एक दिन उसके घर मिठाई बनी। माँ ने सब बच्चों को बराबर बाँट दी। सब मिठाई पाकर प्रसन्न होकर खाने लगे पर वह कहने लगा मेरा लड्ड छोटा है। दूसरे बच्चे तब तक लड्डु खा चुके थे, नहीं तो बदल दिया जाता। वह क्रोधी तो था ही, जोर-जोर से रोने
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