________________
पाठ सातवाँ |
|भगवान आदिनाथ
बेटी - माँ, चलो न घर ! माँ - चलती तो हूँ, जरा भक्तामरजी का पाठ कर लूँ। बेटी - भक्तामरजी क्या है? माँ - भक्तामर स्तोत्र एक स्तुति का नाम है, जिसमें भगवान
आदिनाथ की स्तुति (भक्ति) की गई है। बेटी - माँ, आदिनाथ कौन थे जिनकी स्तुति हजारों लोग प्रतिदिन
करते हैं? माँ - वे भगवान थे। वे दुनियाँ की सब बातों को जानते थे
तथा उनके मोह-राग-द्वेष नष्ट हो चुके थे, इस कारण परम सुखी थे।
बेटी - क्या वे जन्म से ही वीतरागी सर्वज्ञ थे? उनका जन्म
कहाँ हुआ था ? माँ - नहीं बेटी ! उन्होंने वीतरागता और सर्वज्ञता पुरुषार्थ से
प्राप्त की थी। उनका जन्म अयोध्या नगरी में वहाँ के
राजा नाभिराय की रानी मरुदेवी के गर्भ से हुआ था। बेटी - वे तो राजकुमार थे, क्या उन्होंने राज्य नहीं किया ? माँ - राज्य किया, विवाह भी किया था। उनकी दो शादियाँ
हुई थीं। पहली पत्नी का नाम नन्दा था, जिससे भरत चक्रवती आदि सौ पुत्र और ब्राह्मी नामक पुत्री उत्पन्न हुई। दूसरी पत्नी का नाम सुनन्दा था, जिससे बाहुबली
पुत्र और सुन्दरी नामक पुत्री उत्पन्न हुई। बेटी - तो क्या भरत चक्रवर्ती और बाहुबली आदिनाथ भगवान
के ही पुत्र थे? - भगवान तो वे बाद में बने। उस समय तो उनका नाम राजा ऋषभदेव था। प्रथम तीर्थंकर भगवान होने से उन्हें आदिनाथ भी कहने लगे।
एक दिन राजा ऋषभदेव अपनी सभा में बैठे नीलांजना का नृत्य देख रहे थे। नृत्य के बीच में ही नीलांजना की मृत्यु हो गई। यह देख उन्हें संसार की क्षणभंगुरता का ध्यान आया और राजपाट आदि सभी का राग छोड़कर दिगम्बर हो गये। छह माह तक तो आत्म-ध्यान में लीन रहे। उसके बाद छह माह तक आहार की विधि नहीं मिली।