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अथ चारित्रपाहुड
(दोहा ) वीतराग सर्वज्ञ जिन वंदूं मन वच काय । चारित धर्म बखानियो सांचो मोक्ष उपाय ।।१।। कुन्दकुन्द मुनिराजकृत चारितपाहुड ग्रन्थ ।
प्राकृत गाथा बंध की करूँ वचनिका पंथ ।।२।। इसप्रकार मंगलपूर्वक प्रतिज्ञा करके अब चारित्रपाहुड प्राकृत गाथाबंध की देशभाषामय वचनिका का हिन्दी अनुवाद लिखा जाता है, श्री कुन्दकुन्द आचार्य प्रथम ही मंगल के लिए इष्टदेव को नमस्कार करके चारित्रपाहुड को कहने की प्रतिज्ञा करते हैं -
सव्वण्हु सव्वदंसी णिम्मोहा वीयराय परमेट्ठी। वंदित्तु तिजगवंदा अरहंता भव्वजीवेहिं ।।१।। णाणं दसण सम्मं चारित्तं सोहिकारणं तेसिं । मोक्खाराहणहेउं चारित्तं पाहुडं वोच्छे ।।२।।युग्मम् । सर्वज्ञान सर्वदर्शिनः निर्मोहान् वीतरागान् परमेष्ठिनः । वंदित्वा त्रिजगद्वंदितान् अर्हतः भव्यजीवैः ।।१।। ज्ञानं दर्शनं सम्यक् चारित्रं शुद्धिकारणं तेषाम् । मोक्षाराधनहेतुं चारित्रं प्राभृतं वक्ष्ये ।।२।।युग्मम् ।। सर्वज्ञ एवं सर्वदर्शी अमोही अरिहंत जिन । त्रैलोक्य से हैं पज्य जो उनके चरण में कर नमन ॥१॥ ज्ञान-दर्शन-चरण सम्यक् शुद्ध करने के लिए। चारित्रपाहुड़ कहूँ मैं शिवसाधना का हेतु जो।।२।।