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विषय सम्यग्दर्शनादिकत्रय का अर्थ ज्ञानादिभावत्रय की शुद्धि के अर्थ दो प्रकार का चारित्र चारित्र के सम्यक्त्वचरण संयम-चरण भेद सम्यक्त्वचरण के शंकादिमलों के त्याग निमित्त उपदेश अष्ट अंगों के नाम नि:शंकित आदि अष्टगुणविशुद्ध जिनसम्यक्त्व का आचरण सम्यक्त्वचरण चारित्र है और वह मोक्ष के स्थान के लिए है सम्यक्त्वचरण चारित्र पूर्वक संयमचरणचारित्र शीघ्र ही मोक्ष का कारण है। सम्यक्त्वचरणचारित्र से भ्रष्ट संयम चरणधारी भी मोक्ष को नहीं प्राप्त करता सम्यक्त्वचरण के चिह्न सम्यक्त्व त्याग के चिह्न तथा कुदर्शनों के नाम उत्साह भावनादि होने पर सम्यक्त्व का त्याग नहीं हो सकता है मिथ्यात्वादित्रय त्यागने का उपदेश मिथ्यामार्ग में प्रवर्तानेवाले दोष चारित्रदोष को मार्जन करनेवाले गुण मोहरहित दर्शनादित्रय मोक्ष के कारण ही हैं संक्षेपता से सम्यक्त्व का माहात्म्य, गुणश्रेणी निर्जरा सम्यक्त्वचरणचारित्र संयमचरण के भेद और भेदों का संक्षेपता से वर्णन सागारसंयमचरण के ११ स्थान अर्थात् ग्यारह प्रतिमा सागारसंयमचरण का कथन
पृष्ठ | विषय ६१ | पंच अणुव्रत का स्वरूप
तीन गुणव्रत का स्वरूप शिक्षाव्रत के चार भेद यतिधर्मप्रतिपादन की प्रतिज्ञा
यतिधर्म की सामग्री ६३ | पंचेन्द्रियसंवरण का स्वरूप
पाँच व्रतों का स्वरूप पंचमहाव्रतों को महाव्रत संज्ञा किस कारण से है अहिंसाव्रत की पाँच भावना सत्यव्रत की ५ भावना अचौर्यव्रत की भावना ब्रह्मचर्य व्रत की भावना अपरिग्रह-महाव्रत की ५ भावना संयमशुद्धि की कारण पंच समिति | ज्ञान का लक्षण तथा आत्मा ही ज्ञानस्वरूप है
मोक्षमार्गस्वरूप ज्ञानी का लक्षण परमश्रद्धापूर्वक-रत्नत्रय का ज्ञाता ही मोक्ष का भागी है निश्चयचारित्ररूप ज्ञान के धारक सिद्ध होते हैं इष्ट-अनिष्ट के साधक गुणदोष का ज्ञान ज्ञान से ही होता है सम्यग्ज्ञान सहित चारित्र का धारक शीघ्र ही अनुपम सुख को प्राप्त होता है
संक्षेपता से चारित्र का कथन ७३ चारित्र पाहुड की भावना का फल तथा भावना का उपदेश
४. बोधपाहुड आचार्य की स्तुति और ग्रन्थ करने की प्रतिज्ञा
आयतन आदि ११ स्थलों के नाम ७४ | आयतनत्रय का लक्षण (२७)
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