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________________ ૨૮રૂ मोक्षपाहुड इन्द्रपद को प्राप्त होते हैं अथवा लौकान्तिकदेव एक भवावतारी हैं, उनमें जाकर उत्पन्न होते हैं। वहाँ से चयकर मनुष्य हो मोक्षपद को प्राप्त करते हैं। इसप्रकार धर्मध्यान से परंपरा मोक्ष होता है तब सर्वथा निषेध क्यों करते हो ? जो निषेध करते हैं वे अज्ञानी मिथ्यादृष्टि हैं, उनको विषयकषायों में स्वच्छंद रहना है इसलिए इसप्रकार कहते हैं ।।७७।। आगे कहते हैं कि जो इस काल में ध्यान का अभाव मानते हैं और मुनिलिंग पहिले ग्रहण कर लिया अब उसको गौण करके पाप में प्रवृत्ति करते हैं वे मोक्षमार्ग से च्युत हैं - जे पावमोहियमई लिंगं घेत्तूण जिणवरिंदाणं। पावं कुणंति पावा ते चत्ता मोक्खमग्गम्मि ।।७८।। ये पापमे हितमतयः लिंगं गृहीत्वा जि न व र` = द्र । ण । म । पापं कुर्वन्ति पापा: ते त्यक्त्वा मोक्षमार्गे ।।७८।। अर्थ – जिनकी बुद्धि पापकर्म से मोहित है वे जिनवरेन्द्र तीर्थंकर का लिंग ग्रहण करके भी पाप करते हैं वे पापी मोक्षमार्ग से च्युत हैं। भावार्थ - जिन्होंने पहले निर्ग्रन्थ लिंग धारण कर लिया और पीछे ऐसी पापबुद्धि उत्पन्न हो गई कि अभी ध्यान का काल तो है नहीं, इसलिए क्यों प्रयास करें ? ऐसा विचारकर पाप में प्रवृत्ति करने लग जाते हैं वे पापी हैं, उनको मोक्षमार्ग नहीं है ।।७२।। [* इस काल में धर्मध्यान किसी को नहीं होता' किन्तु भद्र ध्यान (व्रत, भक्ति, दान, पूजादिक के शुभभाव) होते हैं। इससे ही निर्जरा और परम्परा मोक्ष माना है और इसप्रकार सातवें गुणस्थान तक भद्र ध्यान और पश्चात् ही धर्मध्यान माननेवालों ने ही श्री देवसेनाचार्यकृत 'आराधनासार' नाम देकर एक जालीग्रन्थ बनाया है उसी का उत्तर केकड़ी निवासी पण्डित श्री मिलापचन्दजी कटारिया ने 'जैन निबंध रत्नमाला' पृष्ठ ४७ से ६० में दिया है कि इस काल में धर्म ध्यान गुणस्थान ४ से ७ तक आगम में कहा है। आधार - सूत्रजी की टीकाएँ, श्री राजवार्तिक, श्लोकवार्तिक, सर्वार्थसिद्धि आदि। ] आगे कहते हैं कि जो मोक्षमार्ग से च्युत हैं वे कैसे हैं - जे पंचचेलसत्ता गंथग्गाही य जायणासीला। हैं परिग्रही अध:कर्मरत आसक्त जो वस्त्रादि में। अर याचना जो करें वे सब मुक्तिमग से बाह्य हैं।।७९।।
SR No.008340
Book TitleAshtapahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size888 KB
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