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________________ मोक्षपाहुड भवति ध्रुवं निर्वाणं विषयेषु विरक्तचित्तानाम् ।।७० ।। अर्थ - पूर्वोक्त प्रकार जिनका चित्त विषयों से विरक्त है, जो आत्मा का ध्यान करते रहते हैं, जिनके बाह्य अभ्यन्तर दर्शन की शुद्धता है और जिनके दृढ़ चारित्र है उनको निश्चय से निर्वाण होता है। भावार्थ - पहिले कहा था कि जो विषयों से विरक्त हों, आत्मा का स्वरूप जानकर आत्मा की भावना करते हैं वे संसार से छूटते हैं। इस ही अर्थ को संक्षेप में कहा है कि जो इन्द्रियों के विषयों से विरक्त होकर बाह्य अभ्यन्तर दर्शन की शुद्धता से दृढ़ चारित्र पालते हैं उनको नियम से निर्वाण की प्राप्ति होती है, इन्द्रियों के विषयों में आसक्ति सब अनर्थों का मूल है, इसलिए इनसे विरक्त होने पर उपयोग आत्मा में लगे तब कार्यसिद्धि होती है ।।७०।। २७९ आगे कहते हैं कि जो परद्रव्य में राग है, वह संसार का कारण है इसलिए योगीश्वर आत्मा में भावना करते हैं - जेण रागो परे दव्वे संसारस्स हि कारणं । तेणावि जोइणो णिच्चं कुज्जा अप्पे सभावणं । । ७१ ।। येन रागः परे द्रव्ये संसारस्य हि कारणम् । तेनापि योगी नित्यं कुर्यात् आत्मनि स्वभावनाम् । ।७१ । । अर्थ - जिस कारण से परद्रव्य में राग है, वह संसार ही का कारण है उस कारण ही से योगीश्वर मुनि नित्य आत्मा ही में भावना करते हैं। भावार्थ – कोई ऐसी आशंका करते हैं कि परद्रव्य में राग करने से क्या होता है ? परद्रव्य है वह पर है ही, अपने राग जिसकाल हुआ उस काल है, पीछे मिट जाता है उसको उपदेश दिया है कि परद्रव्य से राग करने पर परद्रव्य अपने साथ लगता है यह प्रसिद्ध है और अपने राग का संस्कार दृढ़ होता है तब परलोक तक भी चला जाता है यह तो युक्ति सिद्ध है और जिनागम में राग से कर्म का बंध कहा है, इसका उदय अन्य जन्म का कारण है, इसप्रकार परद्रव्य में राग से संसार होता है, इसलिए योगीश्वर मुनि परद्रव्य से राग छोड़कर आत्मा में निरंतर भवना रखते हैं ।। ७१ ।। पर द्रव्य में जो राग वह संसार कारण जानना । इसलिये योगी करें नित निज आतमा की भावना ।। ७१ ।। निन्दा - प्रशंसा दुक्ख-सुख अर शत्रु-बंधु - मित्र में । अनुकूल अर प्रतिकूल में समभाव ही चारित्र है ।। ७२ ।।
SR No.008340
Book TitleAshtapahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size888 KB
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