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मोक्षपाहुड
२४१ अर्थ – अक्ष अर्थात् स्पर्शन आदि इन्द्रियाँ वह तो बाह्य आत्मा है, क्योंकि इन्द्रियों से स्पर्श आदि विषयों का ज्ञान होता है तब लोग कहते हैं कि ऐसे ही जो इन्द्रियाँ हैं, वही आत्मा है, इसप्रकार इन्द्रियों को बाह्य आत्मा कहते हैं। अंतरात्मा है वह अंतरंग में आत्मा का प्रकट अनुभवगोचर संकल्प है शरीर और इन्द्रियों से भिन्न मन के द्वारा देखने, जाननेवाला है, वह मैं हूँ, इसप्रकार स्वसंवेदनगोचर संकल्प वही अन्तरात्मा है तथा परमात्मा कर्म जो द्रव्यकर्म ज्ञानावरणादिक तथा भावकर्म जो राग-द्वेष-मोहादिक और नोकर्म जो शरीरादिक कलंकमल से विमुक्त-रहित, अनंतज्ञानादिक गुणसहित वही परमात्मा है, वही देव है, अन्य को देव कहना उपचार है।
भावार्थ - बाह्य आत्मा तो इन्द्रियों को कहा तथा अंतरात्मा देह में स्थित देखना जानना जिनके पाया जाता है ऐसा मन के द्वारा संकल्प है और परमात्मा कर्मकलंक से रहित कहा। यहाँ ऐसा बताया है कि यह जीव ही जबतक बाह्य शरीरादिक को ही आत्मा जानता है तबतक तो बहिरात्मा है, संसारी है, जब यही जीव अंतरंग में आत्मा को जानता है तब यह सम्यग्दृष्टि होता है तब अन्तरात्मा है और यह जीव जब परमात्मा के ध्यान से कर्मकलंक से रहित होता है, तब पहिले तो केवलज्ञान प्राप्त कर अरहंत होता है. पीछे सिद्धपद को प्राप्त करता है. इन दोनों को ही परमात्मा कहते हैं। अरहंत तो भाव कलंक रहित हैं और सिद्ध द्रव्य-भावरूप दोनों ही प्रकार के कलंक से रहित हैं, इसप्रकार जानो ।।५।। आगे उस परमात्मा का विशेषण द्वारा स्वरूप कहते हैं -
मलरहिओ कलचत्तो अणिंदिओ के वलो िव सद्ध ८ प । । परमेट्ठी परमजिणो सिवकरो सासओ सिद्धो ।।६।। मलरहित: कलत्यक्तः अनिद्रिय: केवल: विशुद्धात्मा।
परमेष्ठी परमजिन: शिवंकरः शाश्वत: सिद्धः ।।६।। अर्थ - परमात्मा ऐसा है - मलरहित है - द्रव्यकर्म भावकर्मरूप मल से रहित है, कलत्यक्त (शरीर रहित) है, अनिंद्रिय (इन्द्रिय रहित) है अथवा अनिंदित अर्थात् किसीप्रकार निंदायुक्त नहीं है, सबप्रकार से प्रशंसा योग्य है, केवल (केवलज्ञानमयी) है,विशुद्धात्मा, जिसकी आत्मा का
है परमजिन परमेष्ठी है शिवंकर जिन शाश्वता। केवल अनिन्द्रिय सिद्ध है कल-मलरहित शुद्धातमा।।६।।