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अष्टपाहुड
मंत्रसाधनादिक व्यापार हैं, वे आत्मा के शुद्ध चैतन्य परिणामस्वरूप भाव में स्थित हैं। शुद्धभाव से सब सिद्धि है, इसप्रकार संक्षेप में कहना जानो, अधिक क्या कहें? ।।१६४।। __ आगे इस भावपाहुड को पूर्ण करते हैं, इसके पढ़ने सुनने व भाव करने का (चिन्तन का) उपदेश करते हैं -
इय भावपाहुडमिणं सव्वंबुद्धेहि देसियं सम्मं । जो पढइ सुणइ भावइ सो पावइ अविचलं ठाणं ।।१६५।। इति भावप्राभृतमिदं सर्वबुद्धैः देशितं सम्यक् । यः पठति शृणोति भावयति स: प्राप्नोति अविचलं
स थ । न म । । १ ६ ५ । । अर्थ - इसप्रकार इस भावपाहुड का सर्वबुद्ध-सर्वज्ञदेव ने उपदेश दिया है, इसको जो भव्यजीव सम्यक्प्रकार से पढ़ते हैं, सुनते हैं और इसका चिन्तन करते हैं, वे शाश्वत सुख के स्थान मोक्ष को पाते हैं।
भावार्थ - यह भावपाहुड ग्रंथ सर्वज्ञ की परम्परा से अर्थ लेकर आचार्य ने कहा है, इसलिए सर्वज्ञ का ही उपदेश है, केवल छद्मस्थ का ही कहा हुआ नहीं है, इसलिए आचार्य ने अपना कर्तव्य प्रधान कर नहीं कहा है। इसके पढ़ने सुनने का फल मोक्ष कहा, वह युक्त ही है, शुद्धभाव से मोक्ष होता है और इसके पढ़ने से शुद्धभाव होते हैं। (नोंध - यहाँ स्वाश्रयी निश्चय में शुद्धता करे तो निमित्त में शास्त्र पठनादि में व्यवहार से निमित्त कारण-परम्परा कारण कहा जाय । अनुपचार=निश्चय बिना उपचार-व्यवहार कैसा ?) इसप्रकार इसका पढ़ना, सुनना, धारणा और भावना करना परम्परा मोक्ष का कारण है।
इसलिए हे भव्यजीवों ! इस भावपाहुड को पढ़ो, सुनो, सुनाओ, भावो और निरन्तर अभ्यास करो जिससे भाव शुद्ध हों और सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र की पूर्णता को पाकर मोक्ष को प्राप्त करो तथा वहाँ परमानंदरूप शाश्वतसुख को भोगो।
इसप्रकार श्री कुन्दकुन्दनामक आचार्य ने भावपाहुडग्रंथ पूर्ण किया।
इसका संक्षेप ऐसे है - जीवनामक वस्तु का एक असाधारण शुद्ध अविनाशी चेतना स्वभाव १. 'शुद्धभाव' का निरूपण दो प्रकार से किया गया है, जैसे 'मोक्षमार्ग दो नहीं हैं' किन्तु उसका निरूपण दो प्रकार का है, इसीप्रकार शुद्धभाव को जहाँ दो प्रकार के कहे हैं, वहाँ निश्चयनय से और व्यवहारनय से कहा है - ऐसा समझना चाहिए। निश्चय सम्यग्दर्शनादि है उसे ही व्य. मान्य है और उसे ही निरतिचार व्यवहार रत्नत्रयादिक में व्यवहार से शुद्धत्व' अथवा 'शुद्ध संप्रयोगत्व' का आरोप आता है, जिसको व्यवहार में शुद्धभाव' कहा है, उसी को निश्चय अपेक्षा अशुद्ध कहा है-विरुद्ध कहा है, किन्तु व्यवहारनय से व्यवहारविरुद्ध नहीं है।