________________
अष्टपाहुड
२३४ चन्द्रमा शोभा पाता है, वैसे ही जिनमत रूप आकाश में गुणों के समूहरूपी मणियों की माला से मुनीन्द्ररूप चन्द्रमा शोभा पाता है।
भावार्थ - अट्ठाईस मूलगुण, दशलक्षण धर्म, तीन गुप्ति और चौरासी लाख उत्तरगुणों की मालासहित मुनि जिनमत में चन्द्रमा के समान शोभा पाता है, ऐसे मुनि अन्यमत में नहीं हैं।।१६० ।। __ आगे कहते हैं कि जिनके इसप्रकार विशुद्ध भाव हैं, वे सत्पुरुष तीर्थंकर आदि पद के सुखों को पाते हैं -
चक्कहररामकेसवसुरवरजिणगणहराइसोक्खाई। चारणमुणिरिद्धीओ विसुद्धभावा णरा पत्ता ।।१६१।। चक्रधररामकेशवसुरवरजिनगणधरादिसौख्यानि।
चारणमुन्यर्ली: विशुद्धभावा नरा: प्राप्ताः ।।१६१।। अर्थ – विशुद्ध भाववाले ऐसे नर मुनि हैं, वह चक्रधर (चक्रवती, छह खंड का राजेन्द्र) राम (बलभद्र), केशव (नारायण, अर्द्धचक्री) सुरवर (देवों का इन्द्र) जिन (तीर्थंकर पंचकल्याणक सहित, तीनलोक से पूज्य पद) गणधर (चार ज्ञान और सप्तऋद्धि के धारक मुनि) इनके सुखों का तथा चारणमुनि (जिनके आकाशगामिनी आदि ऋद्धियाँ पाई जाती हैं) की ऋद्धियों को प्राप्त हुए।
भावार्थ - पहिले इसप्रकार निर्मल भावों के धारक पुरुष हुए वे इसप्रकार के पदों के सुखों को प्राप्त हुए, अब जो ऐसे होंगे वे पावेंगे, ऐसा जानो ।।१६१।। आगे कहते हैं कि मोक्ष का सुख भी ऐसे ही पाते हैं -
सिवमजरामरलिंगमणोवममुत्तमं परमविमलमतुलं । पत्ता वरसिद्धिसुहं जिणभावणभाविया जीवा ।।१६२।। शिवमजरामरलिंगं अनुपममुत्तमं परमविमलमतुलम् । प्राप्तो वरसिद्धिसुखं जिनभावनाभाविता जीवाः ।।१६२।।
इससे अधिक क्या कहें हम धर्मार्थकाम रु मोक्ष में। या अन्य सब ही कार्य में है भाव की ही मुख्यता ।।१६४।। इस तरह यह सर्वज्ञ भासित भावपाहड जानिये। भाव से जो पढ़ें अविचल थान को वे पायेंगे।।१६५।।