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भगवान ने श्रद्धान को ही सम्यग्दर्शन कहा है। यह सम्यग्दर्शन रत्नत्रय में सार है, मोक्षमहल की प्रथम सीढ़ी है। इस सम्यग्दर्शन से ही ज्ञान और चारित्र सम्यक् होते हैं।
इसप्रकार सम्पूर्ण दर्शनपाहुड सम्यक्त्व की महिमा से ही भरपूर है। इस पाहुड में समागत निम्नांकित सूक्तियाँ ध्यान देने योग्य हैं -
१. दसणमूलो धम्मो - धर्म का मूल सम्यग्दर्शन है। २. दंसणहीणो ण वंदिव्यो - सम्यग्दर्शन से रहित व्यक्ति वंदनीय नहीं है। ३. दंसणभट्ठस्स णत्थि णिव्वाणं - जो सम्यग्दर्शन से भ्रष्ट हैं, उनको मुक्ति की प्राप्ति नहीं होती। ४. सोवाणं पढमं मोक्खस्स - सम्यग्दर्शन मोक्ष महल की प्रथम सीढ़ी है।
५. जं सक्कइ तं कीरइ जं च ण सक्केई तं च सद्दहणं - जो शक्य हो, करो; जो शक्य न हो, न करो; पर श्रद्धान तो करो ही। (२) सूत्रपाहुड ___ सत्ताईस गाथाओं में निबद्ध इस पाहुड में अरहंतों द्वारा कथित, गणधर देवों द्वारा निबद्ध, वीतरागी नग्न दिगम्बर सन्तों की परम्परा से समागत सुव्यवस्थित जिनागम को सूत्र कहकर श्रमणों को उसमें बताये मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी गई है; क्योंकि जिसप्रकार सूत्र (डोरा) सहित सुई खोती नहीं है, उसीप्रकार सूत्रों (आगम) के आधार पर चलनेवाले श्रमण भ्रमित नहीं होते, भटकते नहीं हैं।
सूत्र में कथित जीवादि तत्त्वार्थों एवं तत्संबंधी हेयोपादेय संबंधी ज्ञान और श्रद्धान ही सम्यग्दर्शन है । यही कारण है कि सूत्रानुसार चलनेवाले श्रमण कर्मों का नाश करते हैं। सूत्रानुशासन से भ्रष्ट साधु संघपति हो, सिंहवृत्ति हो, हरिहर-तुल्य ही क्यों न हो; सिद्धि को प्राप्त नहीं करता, संसार में ही भटकता है । अत: श्रमणों को सूत्रानुसार ही प्रवर्तन करना चाहिए।
जिनसूत्रों में तीन लिंग (भेष) बताये गये हैं; उनमें सर्वश्रेष्ठ नग्न दिगम्बर साधुओं का है, दूसरा उत्कृष्ट श्रावकों का है और तीसरा आर्यिकाओं का है। इनके अतिरिक्त कोई भेष नहीं है, जो धर्म की दृष्टि से पूज्य हो। साधु के लिंग (भेष) को स्पष्ट करते हुए आचार्य कहते हैं -
“जह जायरूवसरिसो तिलतुसमेत्तं ण गिहदि हत्थेसु।
जइ लेइ अप्पबहुयं तत्तो पुण जाइ णिग्गोदम् ।।१८।। जैसा बालक जन्मता है, साधु का रूप वैसा ही नग्न होता है। उसके तिलतुषमात्र भी परिग्रह नहीं होता। यदि कोई साधु थोड़ा-बहुत भी परिग्रह ग्रहण करता है तो वह निश्चित रूप से निगोद जाता है।"
वस्त्र धारण किए हुए तो तीर्थंकरों को भी मोक्ष नहीं होता है तो फिर अन्य की तो बात ही क्या करें ? एक मात्र नग्नता ही मार्ग है, शेष सब उन्मार्ग है। स्त्रियों के नग्नता संभव नहीं है, अत: उन्हें मुक्ति भी संभव नहीं है। उनकी योनि, स्तन, नाभि और काँखों में सूक्ष्म त्रसजीवों की उत्पत्ति निरन्तर होती रहती है। मासिक
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