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________________ प्रकाशकीय प्रस्तुत 'अन्तर्द्वन्द' कृति के माध्यम से लेखक ने एक पचहत्तर वर्षीय वृद्ध व्यक्ति के मन-मस्तिष्क में होते स्वाभाविक अन्तर्द्वन्द का सशक्त चित्रण किया है। कथानक की 'चिन्तनधारायें एक ही व्यक्ति के विविध विचारों के आधार पर अनेक रूपों में सहज प्रवाहित हुई हैं। एक पात्रीय प्रस्तुत कथानक का नायक साठोत्तर अवस्था में स्वाध्याय करता प्रतीत होता है; क्योंकि उससे अपने यौवनावस्था में जो आपराधिक काम हुए हैं, उनका उसे पश्चाताप है। खान-पान में आचार-विचार में अपने हिताहित के प्रति अब सजग प्रतीत होता है। जब वह ७५ वर्षीय बृद्ध पुत्रों के सहयोग देने की भावना से दुकान जाता है, घर में नाती-पोतों को संस्कार देना चाहता है तो जनरेशन गेप (पीढ़ियों के अन्तर) के कारण वह उसमें भी सफल नहीं होता और परिवार से उपेक्षा का अनुभव करता है। वह सोचता है कि मैंने जिनके लिए ये सब पाप किए हैं; वे ही अब मुझे सठयाना समझते हैं। मात्र बडे होने से सम्मान और सविधायें जुटाकर श्रवणकुमार बनना चाहते हैं। जिस शारीरिक स्वास्थ्य के लिए मैंने भक्ष्याभक्ष्य का विवेक नहीं रखा; अब वह भी जवाब देने लगा है; परन्तु ....। 'अब पछताये क्या होत है, जब चिड़िया चुग गई खेत'। जब उसे अपने पूर्वकृत आर्त-रौद्रध्यान, स्वार्थी भावना और अनैतिक कार्यों का ध्यान आता है तो उसके रोंगटे खड़े हो जाते हैं। ऐसी परिस्थिति वाले लोगों के लिए लेखक ने यह संकेत दिए हैं कि भूत को भूलो और वर्तमान को संभालो, भविष्य स्वतः संभल जायेगा, निराश होने की आवश्यकता नहीं। जिसतरह घास को जलाने के लिए एक चिन्गारी काफी है, उसीप्रकार पूर्व पापपुंज को भस्म करने के लिए सम्यग्ज्ञान की एक चिन्गारी पर्याप्त है। यह एक व्यक्ति की बात नहीं; अपितु सभी साठोत्तरों की समस्यायें हैं। इस कृति द्वारा लेखक ने बहुत ही सरल सुबोध शैली में दिशाबोध देने का सफल प्रयास किया है, एतदर्थ लेखक निश्चय ही प्रशंसा का पात्र है। प्रस्तुत कृति को प्रकाशित करके हमारा ट्रस्ट गौरवान्वित है। ट्रस्ट का संक्षिप्त परिचय कवर पृष्ठ ३ पर है। पुस्तक के आकर्षक कवर एवं मुद्रण व्यवस्था में अखिल बंसल, जयपुर के अथक परिश्रम और सूझ-बूझ के लिए धन्यवादार्ह हैं; एतदर्थ ट्रस्ट उनका आभारी है। - पण्डित रतनचन्द भारिल्ल
SR No.008339
Book TitleAntardvand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmatmaprakash Bharilla
PublisherHukamchand Bharilla Charitable Trust Mumbai
Publication Year2004
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size150 KB
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