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________________ फिर वापिस अपने उसी रसोई घर में आकर कैद हो जाता था, लगभग वर्ष भर के लिए। इसीतरह वर्षों बीत गए, कभी किसी ने गौर ही नहीं किया कि कब वह शादी कर आया व कब उसके बाल-बच्चे हो गये और माता-पिता मर-खप गये । उसका और सबकुछ हमारा अपना था, सिवाय उसकी उन व्यक्तिगत खुशियों और गमों के तथा उसकी पगार; लगभग १००० रुपये माहवार के। ____ मैं गवाह हूँ कि किसतरह उसका बचपन बड़ी तेजी से झटपट गायब हो गया था, पर एक सीजन तो बीच में छूट ही गया, मानो यौवन तो उसके आया ही नहीं और अभी जब समकित और सुरभित की जबानी सबाब पर थी, वह असमय ही बुढ़ाने लगा। बाल पक गये, चेहरा लटक गया व कमर झुकने लगी। न जाने ऐसे कौन से रोग ने आ घेरा कि यकायक वह बिखरने लगा। हालांकि न तो उसकी बीमारी के बारे में मालूम करना मुश्किल काम था और न ही बीमारी का इलाज करना; पर यह सब कौन करता? आखिर किसी के भी पास फालतू वक्त ही कहाँ था, कोई अपने जीवन की उपलब्धियों को भोगने में व्यस्त था तो किसी का कैरियर अपने सबाब पर था और कोई अपने जीवन की आधारशिला को मजबूत करने में जी-जान से जुटा हुआ था; ऐसे में उस बिखरते खण्डहर की तरफ ध्यान देने की फुर्सत ही किसे थी? हाँ एक चिन्ता कभी-कभी जरूर हो जाया करती थी कि कहीं उसे कोई चेपी रोग तो नहीं है? कहीं ऐसा न हो---- १५ मिनिट बचाने के लिए, लाइन में लगकर सिनेमा के टिकिट लेने की बजाय जिन्हें १०-२० टिकिट भी १०० रुपये प्रति टिकिट ब्लैक में लेना पोसाता हो, वे उसे लेकर कई दफा घण्टों तक म्यूनिसिपिल हॉस्पिटल आउट डोर की लाइन में खड़े रहते थे; क्योंकि आखिर उसका इलाज किसी प्राइवेट डॉक्टर से कैसे कराया जा सकता है ? उसकी फीस तो १०० अन्तर्द्वन्द/१७ . रुपये हैन ! __ और एक दिन जब पानी सिर से ऊपर बढ़ने लगा तो परिवार के सभी सदस्यों की एक आवश्यक मीटिंग हुई, जिसमें आवाल-गोपाल सभी ने अपने-अपने विचार व्यक्त किये। उसके बिगड़ते स्वास्थ्य के प्रति अपनीअपनी चिन्ता व्यक्त की, तद्जनित दुष्प्रभावों का आकलन किया गया और फिर एक सर्वसम्मत निर्णय के तहत अगले ही दिन उसे उसके जीवन भर की सेवाओं के पुरस्कार स्वरूप बीस हजार रुपये नकद इनाम देकर बिना उसके गाँव का नाम व पता पूछे ही उसके गाँव जाने वाली बस में बिठा दिया गया। हाँ, इस बार उसके बैग की तलाशी भी नहीं ली गई थी। उस दिन रामू गया, सो गया। उसके बाद आज तक किसी को भी मालूम नहीं कि उसका क्या हुआ ? एक दिन वह था, जब रामू के बिना घर का पत्ता भी नहीं हिलता था। घर में कोई भगवान का नाम ले या न ले पर रामू का नाम दिन में सैंकड़ों दफे लिया जाता था। यदि चार बार आदेश दिये जाते थे तो दश बार चिरौरियाँ भी की जाती थीं, पर आज उसे कोई याद भी नहीं करता है। मानो वह दुःस्वप्न जीवन में कभी आया ही न था। आज उसकी जगह गोपाल ने ले ली है। जब से रामू घर में आया था, तब से आज तक उसके साथ घटित होनेवाली हर घटना का मैं मूक, किन्तु जागरुक साक्षी बना रहा। मैं हर चीज के मायने बड़ी अच्छी तरह समझता था, पर मैंने यह सब बदलने की कोशिश कभी नहीं की। हाँ यह सत्य है कि मुझे स्वयं यह सब अच्छा नहीं लगता था और शायद यदि स्वयं मुझे ही इस व्यवहार का संचालन करना होता तो मैं कर भी नहीं पाता; तथापि सब कुछ मेरी मौन सहमति से चलता रहा। ____ हालांकि हर घटनाक्रम पर मेरी पैनी निगाह रहती थी और सबकुछ ठीक-ठाक चलता देख, मैं उस सबसे अनभिज्ञ दिखने का ही प्रयास - अन्तर्द्वन्द/१८
SR No.008339
Book TitleAntardvand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmatmaprakash Bharilla
PublisherHukamchand Bharilla Charitable Trust Mumbai
Publication Year2004
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size150 KB
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