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________________ ऐसे क्या पाप किए! अहिंसा परमो धर्मः - पण्डित रतनचन्द भारिल्ल हिसनं हिंसा इति / कस्यापि पीड़नं दुःख दानं वा हिंसा इति कथ्यते हिंसा त्रिधा भवति मनसा, वाचा, कर्मणा च। मनुष्यः यदि राग-द्वेष, यशात् हानि वा चिन्तयति सा मानसिकी हिसाब र्तते, शुभा शुभं लाभ भाव हिंसापि अपर नामधेयं अस्या / यदि कठोर भाषणेन, कटुप्रलापेन, दुर्वचनेन, असत्य भाषणेन वा कमपिदुःखितं करोति तहिं सा बाचकी हिंसा भवति / यदि जनः कस्यापि जीवनस्य हननं करोति ताड़नादिना, दुःखं ददाति, तहिं सा कायिकी हिंसा भवति / द्रव्य हिंसापि अस्या अपर नाम / एतेषां हिंसानां परित्यागो अहिंसा इति निगद्यते। ___ संसारे अहिंसाया महती उपयोगिता वर्तते / गवादीनां पशूनां यदि हननं न स्यात् तहिं देशे धन-धानस्य दुग्धादीनां च न्यूनता न स्यात् / अहिंसायाः प्रतिष्ठायां सर्वे सर्वत्र ससुखं निर्भयं च विचरन्ति / एतत् तु सर्वेः अनुभूयते एव यत् न कोऽपि जगति स्वविनाशं इच्छति / यदि एवंमेव पशु पक्षिणामपि विषये चिंतयेत तहिं न कस्यचित हननं कश्चित् करिष्यति / अत्रैव कृषिभिः “अहिंसा परमोधर्म' इति अंगीकृतः / उच्यते च-आत्मनः प्रतिकूलनि परेषां न समाचरेत् / अतः एव सर्वैरपि सर्वदा अहिंसा परमोधर्मः पालनीयः लौकस्य च कल्याण कर्त्तव्यम् / हिन्दी अनुवाद ___घात करना ही हिंसा है। किसी प्राणी को पीड़ा पहुँचाना, दुख देने को हिंसा कहते हैं। हिंसा तीन तरह से होती है। मन से, वचन से और काया से / मनुष्य यदि किसी के बारे में राग-द्वेष वश भला-बुरा विचारता है। या उसको लाभ-हानि करना चाहता है। तो वह हिंसा मानसिक है। इसे भाव हिंसा भी कहते हैं। यदि कठोर वचन से दुर्वचन से तथा झूठ बोलकर किसी को दुखी करता है। तो वह वाचकी हिंसा है और यदि मनुष्य किसी जीव का घात करता है, उसे ताड़ना देता है, अथवा दुःख देता है। तो वह काय की हिंसा होती है। इसे द्रव्य हिंसा भी कहते हैं। इस प्रकार की हिंसा का त्याग ही अहिंसा है। संसार में अहिंसा की बड़ी उपयोगिता है। गाय, भैंस, बकरी आदि पशुओं का यदि घात न हो तो देश में धन धान्य और दूध की कमी नहीं हो सकती। अहिंसा की प्रतिष्ठा में सभी प्राणी सब जगह सुख से और निर्भयता से विचरण करें। यह तो सभी अनुभव करते हैं कि जगत में कोई भी अपना विनाश नहीं चाहता। यदि यही बात पशु पक्षियों के विषय में भी सोच लें तो कोई किसी का घात नहीं करेगा। इसीलिये ऋषियों ने 'अहिंसा परमो धर्मः का सिद्धान्त अंगीकार किया है। कहा भी है - जो अपने को अच्छा न लगे ऐसा कोई भी व्यवहार दूसरों के साथ मत करो। इसलिये सभी को सर्वदा अहिंसा धर्म का पालन करना चाहिये / और लोक कल्याण करना चाहिये। (142)
SR No.008338
Book TitleAise Kya Pap Kiye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size489 KB
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