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________________ २१२ ऐसे क्या पाप किए ! अलग प्रकार की है। वर्तमान युग में आध्यात्मिक महापुरुषों में श्री कानजी स्वामी का नाम प्रमुख है, उन्होंने श्री तारणस्वामी के अध्यात्म ज्ञान की महिमा गायी है और उनकी अध्यात्म वाणी पर प्रवचन भी किये हैं, जो अष्टप्रवचन के नाम से दो भागों में प्रकाशित भी हो चुके हैं।" जो तारण जयन्ती के अवसर पर डॉ. भारिल्ल द्वारा सागर में जो प्रवचन हुए थे, श्रीमन्त सेठ भगवानदासजी की भावना के अनुसार उनके ज्येष्ठ पुत्र श्री डालचन्द जैन ने उन प्रवचनों को पुस्तकाकार के रूप में प्रकाशित करने का निर्णय लिया और उस पुस्तक का सम्पादन करने और उसकी प्रस्तावना लिखने के लिए मुझसे अनुरोध किया। मुझे प्रसन्नता है कि इस निमित्त से मुझे श्री जिन तारणस्वामी को भी निकट से समझने का अवसर मिला। ज्ञानसमुच्चयसार की कतिपय महत्त्वपूर्ण गाथाओं पर हुए डॉ. भारिल्ल के प्रवचनों को पढ़कर मुझे ऐसा लगा कि अहो ! ऐसी महान आध्यात्मिक गूढ़तम गाथाएँ, जिन्हें जनसाधारण के द्वारा समझ पाना सचमुच अत्यन्त कठिन कार्य था, परन्तु परवर्ती विद्वानों द्वारा उनका हिन्दी भाषान्तरण हो चुका है। स्व. ब्र. शीतलप्रसादजी का इस कार्य में सर्वाधिक योगदान रहा है। __ वह स्तुत्य है; परन्तु वह बहुत संक्षिप्त सारांश या भावार्थ के रूप में ही है। ___ श्रीमंत सेठ डालचन्दजी ने डॉ. भारिल्ल द्वारा श्री तारणतरण स्वामी के साहित्य पर किए गए प्रवचनों को प्रकाशित कर स्वामीजी के साहित्य को प्रचारित करने का जो अभिनव प्रयोग किया है, यह निश्चय ही अभिनन्दनीय है। यदि इसी दिशा में और भी उसे जन-जन के पठनपाठन का विषय बनाया जा सके तो अति उत्तम होगा। २० बीसवीं सदी का सर्वाधिक चर्चित व्यक्तित्व यह तो सर्व-स्वीकृत तथ्य है कि इस युग में श्री कानजी स्वामी ने कुन्दकुन्द वाणी का स्वाध्याय तो सर्वाधिक किया ही, प्रचार-प्रसार भी उनके माध्यम से ही सर्वाधिक हुआ है। उनकी प्रत्यक्ष-परोक्ष प्रेरणा से अल्प मूल्य में लाखों की संख्या में वीतरागी सत्साहित्य का प्रकाशन हुआ है, हो रहा है और निरन्तर घर-घर में पहुंच रहा है। कुन्दकुन्द वाणी उनके रोम-रोम में समा गई थी। उन्होंने लगातार ४५ वर्ष तक प्रतिदिन दिन में दो बार मुख्यरूप से कुन्दकुन्द वाणी पर ही प्रवचन किए। कुन्दकुन्द साहित्य को सर्वसाधारण की विषयवस्तु बनानेवाले श्री कानजी स्वामी इस सदी के सर्वाधिक चर्चित-व्यक्तित्व रहे हैं। उनके निमित्त से आचार्य कुन्दकुन्ददेव को जितना अधिक पढ़ा-सुना गया, उतना इसके पूर्व उन्हें शायद ही कभी पढ़ा-सुना गया हो ? आध्यात्मिक क्रान्ति के सूत्रधार श्री स्वामीजी इस सदी के युगपुरुष थे। जो व्यक्ति उस व्यक्तित्व के विचारों से, चिन्तन से और तत्त्वप्रतिपादन की शैली से सहमत थे, जिन्हें उनके विचार आगम-सम्मत और युक्तिसंगत लगे थे, जो उनके अन्तर्बाह्य व्यक्तित्व से परिचित और प्रभावित थे; वे तो उन पर पूरी तरह समर्पित थे ही; पर जो अपने पूर्वाग्रहों और पंथव्यामोह के कारण उनके विचारों से पूरी तरह सहमत नहीं हो पाये थे, वे भी उनकी सादगी, सरलता, सज्जनता, उदारता और धार्मिक भावनाओं के प्रशंसक थे। जो पुरुष युग को किसी न किसी रूप में प्रभावित करता है, उसे ही तो युगपुरुष कहते हैं और उनके व्यक्तित्व में यह विशेषता थी। उनके व्यक्तित्व १. ज्ञानसमुच्चयसार की भूमिका (107)
SR No.008338
Book TitleAise Kya Pap Kiye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size489 KB
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