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अहिंसा : महावीर की दृष्टि में भाई ! ऐसी बात नहीं है। भगवान महावीर द्रव्यहिंसा को भी स्वीकार करते हैं। पर उनके आशय को हमें गहराई से समझना होगा।
यह तो आप जानते ही हैं कि हिंसा तीन प्रकार से होती है- मन से. वचन से और काया से।
काया की हिंसा को तो सरकार रोकती है। यदि कोई किसी को जान से मार दे तो उसे पुलिस पकड लेगी, उस पर मकदमा चलेगा और फाँसी की सजा होगी। फाँसी की सजा न हुई तो आजीवन कारावास होगा। न मारे, पीटे तो भी पुलिस पकड़ेगी, मुकदमा चलेगा और दो-चार वर्ष की सजा होगी; पर यदि कोई किसी को वाणी से मारे अर्थात् जान से मारने की धमकी दे, गालियाँ दे, भला-बुरा कहे तो सरकार कुछ नहीं कर सकती।
एकबार मैं पुलिस थाने गया। वहाँ उपस्थित पलिस इंस्पेक्टर से मैंने कहा - "इंस्पेक्टर साहब! अमुक व्यक्ति मुझे जान से मारने की धमकी देता है, मुझे जान का खतरा है।"
तब वे बोले - "इसमें मैं क्या कर सकता हूँ?"
मैंने कहा - "क्या कहा, आप क्या कर सकते हैं? अरे भाई ! आप इन्तजाम कीजिये। ऐसा कीजिये कि दो सिपाही मेरे साथ कर दीजिये।"
वे मुस्कराते हुए बोले - "भाई ! यदि हर सामान्य व्यक्ति के साथ दो पुलिसवाले लगाने लगें तो आप जानते हैं कि भारत में साठ करोड़ आदमी रहते हैं, अतः एक अरब और बीस करोड़ पुलिसवाले चाहिए। बोलो, इतनी पुलिस कहाँ से लायें?"
मैंने कहा - "यह तो आप ठीक ही कहते हैं, पर मैं क्या करूँ? मुझे तो जान का खतरा है।"
बड़ी ही गंभीरता से वे कहने लगे - “ऐसा कीजिये, आप रिपोर्ट लिखा दीजिये।"
इस पर मैंने कहा - "इससे क्या होगा?"
तब बड़े ही इत्मीनान से सिगरेट पीते हुए बोले - “आप चिन्ता न कीजिये। जब आपकी हत्या हो जायेगी, तब उन्हें शीघ्रातिशीघ्र गिरफ्तार कर लिया जायेगा।"
अहिंसा : महावीर की दृष्टि में
१३ मैंने घबड़ाते हुए कहा - "अच्छा इन्तजाम है, मरने के बाद होगा, पहले कुछ नहीं हो सकता।" ___ मायूस-से होते हुए वे कहने लगे - “भाई! हम क्या करें? आप ही बताइये कि ऐसा कौन-सा कानून है, जिसके तहत हम अपराध हुए बिना ही किसी को गिरफ्तार कर लें, सदा के लिए जेल में डाल दें? अधिक से अधिक यह हो सकता है कि हम गंभीर शिकायत पर उनके जमानतमुचलके करा लें। इससे अधिक कुछ नहीं हो सकता। आपकी शिकायत पर न तो उन्हें हम गिरफ्तार करके सदा के लिए जेल में ही डाल सकते हैं और न आपके साथ पुलिसवाले ही लगा सकते हैं।"
जब मैंने उक्त स्थिति पर गम्भीरता से विचार किया तो इस निष्कर्ष पर पहँचा कि कानून तो ठीक ही है। क्योंकि हम लोग वाणी से इतने हत्यारे हो गये हैं कि जिसने जीवन में एक भी जीव की हत्या न की होगी, वह भी दिन में वाणी से दस-बीस बार दस-बीस की हत्या तो कर ही डालता है। बात-बात में हम वाणी की हत्या पर उतर आते हैं। रेल में बैठे हों, मोटर में बैठे हों; पास बैठे आदमी से कहेंगे - "भाई ! जरा उधर सरकना; मैं भी बैठ जाऊँ।" ___ इस पर वह अकड़ जायेगा। फिर क्या है, आप भी कब पीछे रहने वाले हैं? जोर-जोर से कहने लगते हैं - "क्या तूने ही टिकट लिया है, हमने टिकट नहीं लिया क्या? चल हट, नहीं अभी खुदा का प्यारा हो जायेगा।"
बात-बात में हर किसी को भगवान के पास भेजने की सोचने लगते हैं. कहने लगते हैं। अब आप ही अपनी छाती पर हाथ रखकर बताइये कि यदि वाणी की हिंसा पर पुलिस-कार्यवाही होने लगे तो हम और आप में से कौन जेल के बाहर रहेगा? चिन्ता करने की बात नहीं है। क्योंकि जेलों में इतनी जगह ही नहीं है कि जहाँ वाणी के हत्यारों को रखा जाये।
भाई! ये माताएँ-बहिनें हैं न: बडी धर्मात्मा. इतनी धर्मात्मा कि प्रातः काल उठेगी तो स्वयं नहायेंगी, गाय को नहायेंगी, बाल्टी को नहलायेंगी; उसमें निकला दूध पियेंगी। सोचो आप, कितनी धर्मात्मा होंगी?