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अहिंसा : महावीर की दृष्टि में ____ हाँ, तो मूल बात तो यह है कि कोई व्यक्ति ड्रेस से महान नहीं होता है, अपितु अपने विचारों से महान होता है। भगवान महावीर ने अहिंसा का जो उपदेश आज से पच्चीस सौ वर्ष पूर्व दिया था, उसकी जितनी आवश्यकता आज है, उतनी महावीर के जमाने में भी नहीं थी, क्योंकि आज हिंसा ने भयंकर रूप धारण कर लिया है।
कहते हैं कि पहले लोग लाठियों और पत्थरों से लड़ा करते थे। लाठियों और पत्थरों से लड़नेवाले अस्पताल पहुँचते हैं, श्मशान नहीं। तात्पर्य यह है कि घायल होते हैं, मरते नहीं। फिर तलवार का जमाना आया, पर तलवार की मार भी चार हाथ तक की होती है, कोई व्यक्ति दस-बीस मीटर दूर हुआ तो तलवार बेकार है। फिर हमने और भी तरक्की की और गोलियाँ बना ली, पर वे गोलियाँ भी एक समय में एक आदमी को ही मार सकती थीं तथा उनकी मारक क्षमता भी सौ-दौ सौ मीटर तक ही थी; किन्तु आज हमने ऐसी-ऐसी गोलियाँ बना ली हैं कि एक गोली से चीन साफ हो जाये और दूसरी गोली से भारत । मारक क्षमता का भी इतना विकास कर लिया है कि अमेरिका अपने घर बैठे-बैठे ही एक बटन दबाये तो चीन साफ और दूसरा बटन दबाये तो भारत साफ।
और आप जानते हैं कि ये बटन दबाना भी किन लोगों के हाथ में है? जो दिन में तीन-तीन बोतल मदिरा पान करते हैं। भाई ! जब हम गर्म पानी पीनेवाले लोग भी इतना भ्रमित हो जाते हैं कि बिजली का बटन दबाना चाहते हैं और पंखा चल जाता है, भूल से बगल का बटन दब जाता है; तब उन तीन-तीन बोतल पीनेवालों का क्या कहना? यदि उन्होंने चीन का बटन दबाने की सोची और भूल से भारतवाला बटन दब गया तो क्या होगा? हम सब लोग मुफ्त में ही मारे जायेंगे।
कहते हैं कि अमेरिका ने इतनी विनाशक सामग्री तैयार कर ली है कि यदि वह चाहे तो दुनिया को चालीस बार तबाह कर सकता है। रशिया भी आज इस स्थिति में पहुँच गया है कि पच्चीस बार दुनिया को तबाह तो वह भी कर सकता है। चीन भी आज इस स्थिति में है कि पाँच बार दुनिया की सफाई कर दे। भाई ! सौभाग्य कहो या दुर्भाग्य, आज भारत भी
अहिंसा : महावीर की दृष्टि में इस हालत में है कि एकाध बार तो यह काम वह भी निबटा सकता है; पर चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि यह दुनिया ७१ बार बर्बाद हो - ऐसा मौका कभी नहीं आयेगा, क्योंकि जब यह दुनिया एक बार बर्बाद हो जायेगी तो दुबारा बर्बाद होने को कुछ बचेगा ही नहीं। ___ एक बार किसी दार्शनिक से पूछा गया कि तीसरा विश्वयद्ध कैसे लड़ा जायेगा; तो उन्होंने बताया कि तीसरे की बात तो मैं नहीं कह सकता, पर चौथा विश्वयुद्ध लाठियों और पत्थरों से ही लड़ा जायेगा। उनके कहने का तात्पर्य यह था कि यदि तीसरा विश्वयुद्ध हुआ तो वह इतना भयानक होगा कि उसमें सम्पूर्ण दुनिया तबाह हो जायेगी और हम फिर उसी आदम युग में पहुँच जायेंगे, जबकि लोग लाठियों और पत्थरों से लड़ा करते थे; अत: तीसरे विश्वयुद्ध की बात सोचना भी भयानक अपराध है, सामूहिक आत्महत्या का प्रयास है।
भाई ! आज हम बारूद के ढेर पर बैठे हैं, कहीं से भी कोई एक चिनगारी उठे और सारी दुनिया क्षणभर में तबाह हो जाये - इस स्थिति में पहँच गये हैं। आज हिंसा इतनी खतरनाक हो उठी है, अतः भगवान महावीर की अहिंसा की आवश्यकता भी जितनी आज है, उतनी महावीर के जमाने में भी नहीं थी। भाई ! इसीलिए तो मैं कहता हूँ कि महावीर आउट ऑफ डेट नहीं हुए हैं, अपितु एकदम अप टू डेट हैं।
रामायण की लड़ाई छह माह चली थी; पर उसमें मरनेवालों की संख्या हजारों में ही थी, लाखों नहीं। महाभारत की लड़ाई मात्र अठारह दिन चली थी; उसमें भी मरनेवालों की संख्या लाखों ही थी, करोड़ों नहीं; पर आज का असली युद्ध यदि अठारह सैकण्ड ही चल जाये तो मरने वालों की संख्या हजारों नहीं, लाखों नहीं; करोड़ों नहीं; अरबों होगी, असंख्य होगी, अनन्त होगी।
पहले के जमाने में युद्ध के मैदान में सिपाही लड़ते थे और सिपाही ही मरते थे; पर आज का युद्ध सिपाहियों तक ही सीमित नहीं रह गया है, युद्ध-मैदानों तक ही सीमित नहीं रह गया है; आज उसकी लपेट में सारी दुनिया आ गयी है। आज की लड़ाइयों में मात्र सिपाही ही नहीं मरते,