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आध्यात्मिक भजन संग्रह
१५. काहे पाप करे काहे छल
काहे पाप करे काहे छल, जरा चेत ओ मानव करनी से.... तेरी आयु घटे पल पल ।।टेक ।। तेरा तुझको न बोध विचार है, मानमाया का छाया अपार है। कैसे भोंदू बना है संभल, जरा चेत ओ मानव करनी से...।।१।। तेरा ज्ञाता व दृष्टा स्वभाव है, काहे जड़ से यूं इतना लगाव है। दुनियां ठगनी पे अब ना मचल, जरा चेत ओ मानव करनी से...।।२।। शुद्ध चिद्रूप चेतन स्वरूप तू, मोक्ष लक्ष्मी का 'सौभाग्य' भूप तूं।
बन सकता है यह बल प्रबल, जरा चेत ओ मानव करनी से... ।।३।। १६. ध्यान धर ले प्रभू को ध्यान धर ले ध्यान धर ले प्रभू को ध्यान धर ले,
आ माथे ऊबी मौत भाया ज्ञान करले ।।टेक ।। फूल गुलाबी कोमल काया, या पल में मुरझासी, जोबन जोर जवानी थारी, सन्ध्या सी ढल जासी ।प्रभू. को...।।१।। हाड़ मांस का पींजरा पर, या रूपाली चाम, देख रिझायो बावला, क्यूं जड़ को बण्यो गुलाम ।प्रभू. को... ।।२।। लाम्बो चौड़ो मांड पसारो, कीयां रह्यो है फूल, हाट हवेली काम न आसी, या सोना की झूल प्रभू. को... ।।३।। भाई बन्धु कुटुम्ब कबीलो, है मतलब को सारो,
आपा पर को भेद समझले जद होसी निस्तारो ।प्रभू. को... ।।४।। मोक्ष महल को सांचो मारग, यो छः जरा समझले, उत्तम कुल सौभाग्य' मिल्यो है, आतमराम सुमरलौ ।प्रभू. को... ।।५।। .
श्री सौभाग्यमलजी कृत भजन १७. जो आज दिन है वो, कल ना रहेगा, कल ना रहेगा
जो आज दिन है वो, कल ना रहेगा, कल ना रहेगा, घड़ी ना रहेगी ये पल ना रहेगा। समझ सीख गुरु की वाणी, फिरको कहेगा, फिरको कहेगा, घड़ी ना रहेगी ये पल ना रहेगा ।।टेक।। जग भोगों के पीछे, अनन्तों काल काल बीते हैं। इस आशा तृष्णा के अभी भी सपने रीते हैं। बना मूढ़ कबलों मन पर, चलता रहेगा-२ ।।घड़ी ।।१।। अरे इस माटी के तन पे, वृथा अभिमान है तेरा। पड़ा रह जायगा वैभव, उठेगा छोड़ जब डेरा। नहीं साथ आया न जाते, कोई संग रहेगा-२ ।।घड़ी ।।२।। ज्ञानदृग खोलकर चेतन, भेदविज्ञान घट भर ले। सहज 'सौभाग्य' सुख साधन, मुक्ति रमणी सखा वर ले। यही एक पद है प्रियवर, अमर जो रहेगा-२ ।।घड़ी ।।३।। १८. संसार महा अघसागर में संसार महा अघसागर में, वह मूढ़ महा दुःख भरता है। जड़ नश्वर भोग समझ अपने, जो पर में ममता करता है। बिन ज्ञान जिया तो जीना क्या, बिन ज्ञान जिया तो जीना क्या। पुण्य उदय नर जन्म मिला शुभ, व्यर्थ गमों फल लीना क्या ।।टेक ।। कष्ट पड़ा है जो जो उठाना, लाख चौरासी में गोते खाना । भूल गया तूं किस मस्ती में उस दिन था प्रण कीना क्या ।।१।। बचपन बीता बीती जवानी, सर पर छाई मौत डरानी ।। ये कंचन सी काया खोकर, बांधा है गाँठ नगीना क्या ।।२।।
दिखते जो जग भोग रंगीले, ऊपर मीठे हैं जहरीले । . ___भव भय कारण नर्क निशानी, है तूने चित दीना क्या ।।३ ।।