________________
१६०
आध्यात्मिक भजन संग्रह
जहाँ वीतराग विज्ञान कला, निज पर का बोध कराये । जो जन्म मरण से रहित, निरापद मोक्ष महल पधराये । वह जगतपूज्य “सौभाग्य” परमपद, हो आलोकित मेरा || ३ ||
१२. तेरे दर्शन को मन दौड़ा
तेरे दर्शन को मन दौड़ा । । टेर ||
कोटि-कोटि मुँह से जो तेरी महिमा सुनते आया।
इससे भी तू है बढ़ा-चढ़ा है यह दर्शन कर पाया ।। इस पृथ्वी पर बड़ा कठिन है, तुमसा पाना जोड़ा ।। तेरे ।। १ ।। कर पर कर धर नाशा दृष्टि आसन अटल जमाया। परदोष रोष अम्बर आडम्बर रहित तुम्हारी काया । वीतराग विज्ञान कला से, जगबन्धन को तोड़ा || तेरे || २ || पुण्य पाप व्यवहार जगत के हैं सब भव के कारण । शुद्ध चिदानन्द चेतन दर्शन निश्चय पार उतारण ।। निजपद का “सौभाग्य” श्रेष्ठ पा, कैसे जाये छोड़ा || तेरे || ३ || १३. लहरायेगा - लहरायेगा झंडा श्री महावीर का लहरायेगा - लहरायेगा झंडा श्री महावीर का । फहरायेगा - फहरायेगा झंडा श्री महावीर का ।। अखिल विश्व का जो है प्यारा, जैन जाति का चमकित तारा। हम युवकों का पूर्ण सहारा, झंडा श्री महावीर का ।। १ ।। सत्य अहिंसा का है नायक,
दायक ।
शांति सुधारस का है दीनजनों का सदा सहायक, झंडा श्री महावीर का ॥ २ ॥
smark 3D Kailesh Data
Antanji Jain Bhajan Book pra
(८१)
श्री सौभाग्यमलजी कृत भजन
साम्यभाव
वाला,
प्रेमक्षीर
बरसाने
वाला ।
जीवमात्र हर्षाने वाला, झंडा श्री महावीर का ।। ३ ।।
भारत का "सौभाग्य” बढ़ाता,
स्वावलंब का पाठ पढ़ाता । वन्दे वीरम् नाद गुंजाता, झंडा श्री महावीर का ॥ ४ ॥
दर्शाने
१६१
१४. लिया प्रभू अवतार, जय जय कार जय जय कार लिया प्रभू अवतार, जय जय कार जय जय कार । त्रिशलानन्द कुमार जय जय कार जय जय कार । टेक ॥। आज खुशी है, आज खुशी है, तुम्हें खुशी है, हमें खुशी है। खुशियाँ अपरम्पार । जयजयकार ।। १ ।।
पुष्प और रत्नों की वर्षा, सुरपति करते हर्षा - २ । बजा दुंदुभी सार । जयजयकार ।। २ ।। उमग - २ नरनारी आते, नृत्य भजन संगीत सुनाते । इन्द्र शचि ले लार । जयजयकार ।। ३ ।।
प्रभू का रूप अनूप सुहाया, निरख निरख छवि हरि ललचाया । कीने नेत्र हजार । जयजयकार ||४ || जन्मोत्सव की शोभा भारी, देखो प्रभू की लगी सवारी । जुड़ रही भीड़ अपार । जयजयकार ।। ५ ।। आओ हम प्रभू गुण गावें, सत्य अहिंसा ध्वज लहरावें । जो जग मंगलकार । जयजयकार || ६ || पुण्य योग 'सौभाग्य' हमारा, सफल हुआ है जीवन सारा । मिले मोक्ष दातार । जयजयकार ॥ ७ ॥