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________________ अनुक्रमणिका ४. पण्डित दौलतरामजी कृत भजन • अरिरजरहस हनन प्रभु अरहन हे जिन तेरो सुजस उजागर • हे जिन तेरे मैं शरणे आया • मैं आयौ, जिन शरन तिहारी • जाऊँ कहाँ तज शरन तिहारे • हे जिन मेरी, ऐसी बुधि कीजै • आज मैं परम पदारथ पायौ • जिनवर आनन - भान निहारत • त्रिभुवन आनन्दकारी जिन छवि • निरखत जिनचन्द्र वदन निरखत सुख पायौ जिन मुखचन्द ८८-१२९ ९० ९१ • मैं हरख्यौ निरख्यौ मुख तेरो • दीठा भागनतैं जिनपाला • शिवमग दरसावन रावरो दरस • जिन छवि तेरी यह प्यारी लागै म्हाने जिन छवि थारी • जिन छवि लखत यह बुधि भयी • ध्यानकृपान पानि गहि नासी • भविन - सरोरूहसूर भूरिगुनपूरित अरहंता • प्रभु थारी आज महिमा जानी और अबै न कुदेव सुहावै • • उरग सुरंग नरईश शीस जिस आतपत्र त्रिधरे • सुधि लीज्यौ जी म्हारी, मोहि भवदुखदुखिया जानके · जय जय जग भरम- तिमिर • थारा तो वैना में सरधान घणो छै जिनवैन सुनत, मोरी भूल भगी जबतें आनंदजननि दृष्टि परी माई • सुन जिन वैन श्रवन सुख पायौ • और सबै जगद्वन्द मिटावो • जिनवानी जान सुजान रे · नित पीज्यौ धीधारी, जिनवानि • धन धन साधर्मीजन मिलनकी घरी • अब मोहि जानि परी ऐसा मोही क्यों न अधोगति जावै • ऐसा योगी क्यों न अभयपद पावैकबधौं मिलै मोहि श्रीगुरु मुनिवर · गुरु कहत सीख इमि बार - बार • जिन रागद्वेषत्यागा वह सतगुरु हमारा धनि मुनि जिनकी लगी लौ शिवओरनै धनि मुनि जिन यह, भाव पिछाना • धनि मुनि निज आतमहित कीना • • देखो जी आदीश्वर स्वामी कैसा ध्यान लगाया है! • जय श्री ऋषभ जिनंदा! नाश तौ करो स्वामी मेरे दुखदंदा भज ऋषिपति ऋषभे ९२ ९३ ९४ ९५ ९६ ९७ ९८ ९९ १०० १०१ १०२ १०३ १०४ १०५ १०६ marak 3D Kailash Data Annanji Jain Bhajan Book pr (४५) पण्डित दौलतरामजी कृत भजन अनुक्रमणिका • मेरी सुध लीजै रिषभस्वाम! • जगदानंदन जिन अभिनंदन • पद्मसद्म पद्मापद पद्मा • चन्द्रानन जिन चन्द्रनाथ के • भाखूँ हित तेरा, सुनि हो मन मेरा • आतम रूप अनूपम अद्भुत चिन्मूरत दृग्धारी की मोहे • आप भ्रमविनाश आप · • चेतन यह बुधि कौन सयानी • चेतन कौन अनीति गही रे • चेतन तैं यौं ही भ्रम ठान्यो • चेतन अब धरि सहजसमाधि • चिदरायगुन सुनो मुनो • चित चिंतक चिदेश कब • राचि रह्यो परमाहिं तू अपनो मेरे कब है वा दिन की सुघरी ज्ञानी ऐसी होली मचाई • • मेरो मन ऐसी खेलत होरी • जिया तुम चालो अपने देश • मत कीज्यौ जी यारी • मत कीज्यौ जी यारी • मत राचो धीधारी • हे मन तेरी को कुटेव यह • मानत क्यों नहिं रे • जानत क्यौं नहिं रे • छांडि दे या बुधि भोरी • छांडत क्यौं नहिं रे • लखो जी या जिय भोरे की बातें • सुनो जिया ये सतगुरु की बातें • मोही जीव भरम तमतैं नहिं ज्ञानी जीव निवार भरमतम • • अपनी सुधि भूल आप, आप दुख उपाय • जीव तू अनादिहीतें भूल्यौ शिवगैलवा शिवपुर की डगर समरससौं भरी तोहि समझायो सौ सौ बार न मानत यह जिय निपट अनारी • हे नर, भ्रमनींद क्यों न छांडत दुखदाई • अरे जिया, जग धोखे की टाटी • हम तो कबहूँ न हित उपजाये • हम तो कबहुँ न निजगुन भाये • हम तो कबहुँ न निजघर आ हे हितवांछक प्रानी रे • विषयोंदा मद भानै, ऐसा है कोई वे · कुमति कुनारि नहीं है भली रे • • तू काहेको करत रति तनमें घड़ि-घड़ि पल-पल छिन छिन निशदिन जम आन अचानक दावैगा निपट अयाना, तैं आपा नहीं जाना मनवचतन करि शुद्ध भजो जिन • निजहितकारज करना भाई! मोहिड़ा रे जिय! • सौ सौ बार हटक नहिं मानी ८९ १०७ १०८ १०९ ११० १११ ११२ ११३ ११४ ११५ ११६ ११७ ११८ ११९ १२० १२१ १२२ १२३ १२४ १२५ १२६ १२७ १२८ १२९
SR No.008336
Book TitleAdhyatmik Bhajan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size392 KB
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