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________________ आध्यात्मिक भजन संग्रह गावत अजपा गान मनोहर, अनहद झरसौं बरस्यो री ।।४।।निज. ।। देखन आये बुधजन भीगे, निरख्यौ ख्याल अनोखो री ।।५।।निज. ।। १५. मेरा सांई तौ मोमैं नाहीं न्यारा (राग-खंमाच) मेरा सांई तौ मोमैं नाहीं न्यारा, जानें सो जाननहारा ।।मेरा. ।।टेक ।। पहले खेद सह्यौ बिन जानैं। अब सुख अपरम्पारा ।।१।।मेरा. ।। अनंत-चतुष्टय-धारक ज्ञायक, गुन परजै द्रव सारा। जैसा राजत गंधकुटीमें, तैसा मुझमें म्हारा ।।२।।मेरा. ।। हित अनहित मम पर विकलपते, करम बंध भये भारा। ताहि उदय गति गति सुख दुखमैं, भाव किये दुःखकारा ।।३ । मेरा. ।। काल लब्धि जिन आगम सेती, संशयभरम विदारा। बुधजन जान करावन करता, हौं ही एक हमारा ।।४ ।।मेरा. ।। १६. उत्तम नरभव पायकै (राग-कनड़ी) उत्तम नरभव पायकै, मति भूलै रे रामा ।।मति भू. ।।टेक।। कीट पशूका तन जब पाया, तब तू रह्या निकामा। अब नरदेही पाय सयाने, क्यों न भजै प्रभुनामा ।।१।।मति भू. ।। सुरपति याकी चाह करत उर, कब पाऊँ नरजामा। ऐसा रतन पायकै भाई, क्यौं खोवत विनकामा ।।२।।मति भू. ।। धन जोबन तन सुन्दर पाया, मगन भया लखि भामा। काल अचानक झटक खायगा, परे रहेंगे ठामा ।।३ ।।मति भू. ।। अपने स्वामीके पदपंकज, करो हिये बिसरामा। मैंटि कपट भ्रम अपना बुधजन, ज्यौं पावौ शिवधामा ।।४।।मति भू. ।। १७. जिनबानी के सुनैसौं मिथ्यात मिटै जिनबानीके सुनैसौं मिथ्यात मिटै। मिथ्यात मिटै समकित प्रगटै ।।जिनबानी. ।।टेक ।। पण्डित बुधजनजी कृत भजन जैसैं प्रात होत रवि ऊगत, रैन तिमिर सब तुरत फटै।।१।।जिनबानी. ।। अनादि कालकी भूलि मिटावै, अपनी निधि घट घटमैं उघटे। त्याग विभाव सुभाव सुधार, अनुभव करतां करम कटै।।२।।जिनबानी. ।। और काम तजि सेवो याकौं, या बिन नाहिं अज्ञान घटै। बुधजन याभव परभव माहीं, बाकी हुंडी तुरत पटे।।३ ।।जिनबानी. ।। १८. मति भोगन राचौ जी (राग-सोरठ) मति भोगन राचौ जी, भव भव मैं दुख देत घना ।।मति. ।।टेक ।। इनके कारन गति गति मांहीं नाहक नाचौ जी। झूठे सुखके काज धरममैं पाडौ खाँचौजी ।।१।।मति. ।। पूरवकर्म उदय सुख आयां, राजौ माचौ जी। पाप उदय पीड़ा भोगनमैं, क्यौं मन काचौ जी ।।२।।मति. ।। सुख अनन्तके धारक तुम ही, पर क्यों जांचौं जी। बुधजन गुरुका वचन हिया में, जानौ सांचौ जी ।।३ ।।मति. ।। १९. सम्यग्ज्ञान बिना, तेरो जनम अकारथ जाय सम्यग्ज्ञान बिना, तेरो जनम अकारथ जाय ।।सम्यग्ज्ञान. ।।टेक।। अपने सुखमैं मगन रहत नहिं परकी लेत बलाय । सीख सुगुरु की एक न मानें भव भवमैं दुख पाय ।।१।।सम्य. ।। ज्यौं कपि आप काठ लीलाकरि, प्रान तजै बिललाय । ज्यौं निज मुखकरि जाल मकरिया, आप मरै उलझाय ।।२।।सम्य. ।। कठिन कमायो सब धन ज्वारी, छिनमैं देत गमाय । जैसे रतन पायके भोंदू, विलखे आप गमाय ।।३ ।।सम्य. ।। देव शास्त्र गुरुको निहचैकरि, मिथ्यामत मति ध्याय । सुरपति बाँछा राखत याकी, ऐसी नर परजाय ।।४ ।।सम्य. ।। Antanjidain Bhajan Book pants (४३)
SR No.008336
Book TitleAdhyatmik Bhajan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size392 KB
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