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आध्यात्मिक भजन संग्रह
विभिन्न कवियों के भजन
९९. सुन सुन रे चेतन प्राणी
सुन सुन रे चेतन प्राणी - नित ध्यालो जिनवरवाणी दुर्लभ नर भव को पाकर - बन जावो सम्यक्ज्ञानी ।। मानव कुल तुमने पाया, जिनवाणी का शरणा पाया। समझाते गुरूवर ज्ञानी, प्रभु वाणी जग कल्याणी । अब तज दो विषय कषाएँ-छोड़ो सारी नादानी । दुर्लभ नर भव को पाकर बन जावो सम्यक्ज्ञानी ।।१।। यह जीवन है अनमोला, इसको न व्यर्थ खो देना। जीवन में धर्म कमाकर, पर्याय सकल कर लेना। यह नित्य बोधनी वाणी, श्री कुंदकुंद की वाणी। दुर्लभ नर भव को पाकर बन जावो सम्यक् ज्ञानी ।।२।। चलते चलते जीवन की कब जाने शाम हो जाए। ना जाने जलता दीपक, तूफां में कब बुझ जाए। यह अवसर चूक न जाना, प्रभु वाणी भूल न जाना। भोगों में उलझ उलझ कर, जिनधर्म को न बिसराना। सुख का पथ दिखलाती है, माँ सरस्वती जिनवाणी। दुर्लभ नर भव को पाकर बन जाओ सम्यक्ज्ञानी ।।३।। 900. जय जय माँ जिनवाणी जय जय माँ जिनवाणी, निजातम ज्योत जगावे । अनेकांतमय प्रभु की वाणी, मुक्ति मार्ग बताये । भविजन जो श्रद्धा से माने, शांति सुधारस पावे ।
जगत का दुख मिट जावे।।१।। परद्रव्यों से भिन्न निजातम, गुण अनन्त का धारी। वन्दन वीतराग वाणी को, जो सन्मार्ग दिखावे ।
निराकुल सुख उपजावे ।।२।।
१०२. माता जिनवाणी तेरा
माता जिनवाणी तेरा, महा उपकार । जाना माता आज निज वैभव अपार ।। अनेकान्तमयी वाणी स्याद्वाद रूप । षद्रव्य और तत्त्व सात का स्वरूप । आचारज देव दिया दिव्य ध्वनि सार। निज का स्वरूप लखा टूटें भव तार ।। शुद्धातम ज्योति भिन्न अनुभव प्रमाण । ज्ञान की तरंग उठे ज्ञायक महान ।। माता भारती मैं करूँ आपको प्रणाम ।
आपकी कृपा से पाऊँ शीघ्र ध्रुवधाम ।। १०३. परम उपकारी जिनवाणी परम उपकारी जिनवाणी सहज ज्ञायक बताया है। हुआ निर्भार अन्तर में सहज आनन्द छाया है ।।टेक ।। अहो परिपूर्ण ज्ञातारूप प्रभु अक्षय विभवमय हूँ। सहज ही तृप्ति निज में ही, न बाहर कुछ सुहाया है।।१।। उलझ कर दुर्विकल्पों में बीज दुख के रहा बोता। ज्ञान आनन्दमय अमृत धरम मानो पिलाया है ।।२।। नहीं अब लोक की चिन्ता नहीं है उर में भयकिंचित् । ध्येय निष्काम ध्रुव ज्ञायक अहो दृष्टि में आया है ।।३।। मिटी भ्रान्ति मिली शान्ति तत्त्व अनेकान्तमय जाना। सार वीतरागता पाकर शीश सविनय नवाया है ।।४ ।।
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Kalah Data
(१९०)