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________________ आध्यात्मिक भजन संग्रह २३. जगतमें सम्यक उत्तम भाई ......... सम्यकसहित प्रधान नरकमें, धिक शठ सुरगति पाई।।जगत.।। श्रावक-व्रत मुनिव्रत जे पालैं, जिन आतम लवलाई। तिन” अधिक असंजमचारी, ममता बुधि अधिकाई ।।जगत. ।।१।। पंच-परावर्तन तें कीनें, बहुत बार दुखदाई। लख चौरासी स्वांग धरि नाच्यौ, ज्ञानकला नहिं आई।।जगत. ।।२।। सम्यक बिन तिहुँ जग दुखदाई, जहँ भावै तहँ जाई। 'द्यानत' सम्यक आतम अनुभव, सद्गुरु सीख बताई।।जगत. ।।३।। २४. जानत क्यों नहिं रे, हे नर आतमज्ञानी रागदोष पुद्गलकी संगति, निहचै शुद्धनिशानी।।जानत. ।। जाय नरक पशु नर सुर गतिमें, ये परजाय विरानी। सिद्ध-स्वरूप सदा अविनाशी, जानत विरला प्रानी ।।जानत. ।।१।। कियो न काहू हरै न कोई, गुरु सिख कौन कहानी। जनम-मरन-मल-रहित अमल है, कीच बिना ज्यों पानी ।।जानत.।।२।। सार पदारथ है तिहुँ जगमें, नहिं क्रोधी नहिं मानी। 'द्यानत' सो घटमाहिं विराजै, लख हजै शिवथानी ।।जानत. ।।३।। २५. जानो धन्य सो धन्य सो धीर वीरा ......... मदन सौ सुभट जिन, चटक दे पट कियो।।टेक ।। पाँच-इन्द्रि-कटक झटक सब वश कर्यो, पटक मन भूप कीनो जंजीरा ।।धन्य सो. ।।१।। आस रंचन नहीं पास कंचन नहीं, आप सुख सुखी गुन गन गंभीरा ।।धन्यसो. ।।२।। कहत 'द्यानत' सही, तरन तारन वही, सुमर लै संत भव उदधि तीरा ।।धन्यसो. ।।३।। पण्डित द्यानतरायजी कृत भजन २६. जो तैं आतमहित नहिं कीना ......... रामा रामा धन धन कीना, नरभव फल नहिं लीना।।जो तें. ।। जप तप करकै लोक रिझाये, प्रभुताके रस भीना । अंतर्गत परिनाम न सोधे, एको गरज सरी ना ।।जो तैं. ।।१।। बैठि सभामें बहु उपदेशे, आप भये परवीना। ममता डोरी तोरी नाहीं, उत्तमरौं भये हीना ।।जो तें. ।।२।। 'द्यानत' मन वच काय लायके, जिन अनुभव चित दीना । अनुभव धारा ध्यान विचारा, मंदिर कलश नवीना ।।जो तैं. ।।३।। २७. तुमको कैसे सुख है मीत! ......... जिन विषयनि सँग बहु दुख पायो, तिनहीसों अति प्रीति।।तुमको. ।। उद्यमवान बाग चलनेको, तीरथसों भयभीत । धरम कथा कथनेको मूरख, चतुर मृषा-रस-रीत ।।तुमको. ।।१।। नाट विलोकनमें बहु समझौ, रंच न दरस-प्रतीत । परमागम सुन ऊंघन लागौ, जागौ विकथा गीत ।।तुमको. ।।२।। खान पान सुनके मन हरषै, संजम सुन है ईत । 'द्यानत' तापर चाहत होगे, शिवपद सुखित निचीत ।।तुमको. ।।३।। २८. तुम चेतन हो ....... जिन विषयनि सँग दुख पावै सो, क्यों तज देत न हो।।तुम. ।।१।। नरक निगोद कषाय भ्रमावै, क्यों न सचेतन हो।।तुम. ।।२।। 'द्यानत' आपमें आपको जानो, परसों हेत न हो।।तुम. ।।३ ।। २९. तुम ज्ञानविभव फूली बसन्त, यह मन मधुकर ... दिन बड़े भये बैराग भाव, मिथ्यातम रजनीको घटाव।।तुम. ।।१।। बहु फूली फैली सुरुचि बेलि, ज्ञाताजन समता संग केलि।।तुम. ।।२।। ___ 'द्यानत' वानी पिक मधुररूप, सुर नर पशु आनंदघन सुरूप।।तुम. ।।३।। Bra Data (११)
SR No.008336
Book TitleAdhyatmik Bhajan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size392 KB
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