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________________ बारह भावना अध्यात्मनवनीत जिन्दगी इक पल कभी कोई बढ़ा नहीं पाएगा। रस रसायन सुत सुभट कोई बचा नहीं पाएगा।। सत्यार्थ है बस बात यह कुछ भी कहो व्यवहार में। जीवन-मरण अशरण शरण कोई नहीं संसार में ।।६।। निज आत्मा निश्चय-शरण व्यवहार से परमातमा। जो खोजता पर की शरण वह आतमा बहिरातमा ।। ध्रुवधाम से जो विमुख वह पर्याय ही संसार है। ध्रुवधाम की आराधना आराधना का सार है।।७।। संयोग हैं अशरण सभी निज आतमा ध्रुवधाम है। पर्याय व्ययधर्मा परन्तु द्रव्य शाश्वत धाम है।। इस सत्य को पहिचानना ही भावना का सार है। ध्रुवधाम की आराधना आराधना का सार है।।८।। ३. संसारभावना दुखमय निरर्थक मलिन जो सम्पूर्णत: निस्सार है। जगजालमय गति चार में संसरण ही संसार है।। भ्रमरोगवश भव-भव भ्रमण संसार का आधार है। संयोगजा चिद्वृत्तियाँ ही वस्तुतः संसार है।।९।। संयोग हों अनुकूल फिर भी सुख नहीं संसार में। संयोग को संसार में सुख कहें बस व्यवहार में।। दुख-द्वन्द हैं चिद्वृत्तियाँ संयोग ही जगफन्द हैं। निज आतमा बस एक ही आनन्द का रसकन्द है ।।१०।। मंथन करे दिन-रात जल घृत हाथ में आवे नहीं। रज-रेत पेले रात-दिन पर तेल ज्यों पावे नहीं।। सद्भाग्य बिन ज्यों संपदा मिलती नहीं व्यापार में। निज आतमा के भान बिन त्यों सुख नहीं संसार में ।।११।। संसार है पर्याय में निज आतमा ध्रुवधाम है। संसार संकटमय परन्तु आतमा सुखधाम है।। सुखधाम से जो विमुख वह पर्याय ही संसार है। ध्रुवधाम की आराधना आराधना का सार है।।१२।। ४. एकत्वभावना आनन्द का रसकन्द सागर शान्ति का निज आतमा। सब द्रव्य जड़ पर ज्ञान का घनपिण्ड केवल आतमा।। जीवन-मरण सुख-दुख सभी भोगे अकेला आतमा। शिव-स्वर्ग नर्क-निगोद में जावे अकेला आतमा ।।१३।। इस सत्य से अनभिज्ञ ही रहते सदा बहिरातमा। पहिचानते निजतत्त्व जो वे ही विवेकी आतमा ।। निज आतमा को जानकर निज में जमे जो आतमा। वे भव्यजन बन जायेंगे पर्याय में परमातमा ।।१४।। सत्यार्थ है बस बात यह कुछ भी कहो व्यवहार में। संयोग हैं सर्वत्र पर साथी नहीं संसार में ।। संयोग की आराधना संसार का आधार है। एकत्व की आराधना आराधना का सार है।।१५।। एकत्व ही शिव सत्य है सौन्दर्य है एकत्व में। स्वाधीनता सुख शान्ति का आवास है एकत्व में ।। एकत्व को पहिचानना ही भावना का सार है। एकत्व की आराधना आराधना का सार है।।१६।। ५.अन्यत्वभावना जिस देह में आतम रहे वह देह भी जब भिन्न है। तब क्या करें उनकी कथा जो क्षेत्र से भी अन्य हैं ।।
SR No.008335
Book TitleAdhyatma Navneet
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2005
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, Ritual, & Vidhi
File Size333 KB
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