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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates निश्चय और व्यवहार गुमानीराम - पिताजी! कल आपने कहा था कि रत्नत्रय ही दुःख से मुक्ति का मार्ग (मोक्षमार्ग) है। मोक्षमार्ग तो दो हैं न, निश्चय मोक्षमार्ग और व्यवहार मोक्षमार्ग। पं. टोडरमलजी - नहीं बेटा! मोक्षमार्ग दो नहीं हैं, मोक्षमार्ग का कथन ( वर्णन) दो प्रकार से है। जहाँ सच्चे मोक्षमार्ग को मोक्षमार्ग कहा जाय, वह निश्चय मोक्षमार्ग है और जो मोक्षमार्ग तो है नहीं, परन्तु मोक्षमार्ग का निमित्त व सहचारी है, उसे उपचार से मोक्षमार्ग कहा जाय, वह व्यवहार मोक्षमार्ग है। क्योंकि निश्चय और व्यवहार का सब जगह यही लक्षण है : “सच्चे निरूपण को निश्चय कहते हैं और उपचरित निरूपण को व्यवहार।" समयसार में कहा है : व्यवहार अभूतार्थ ( असत्यार्थ) है, क्योंकि वह सत्य स्वरूप का निरूपण नहीं करता है। निश्चय भूतार्थ ( सत्यार्थ) है, क्योंकि वह वस्तु स्वरूप का सच्चा निरूपण करता है। गुमानीराम - मैं तो ऐसा जानता हूँ कि सिद्ध समान शुद्ध आत्मा का अनुभव करना निश्चय है और व्रत, शील , संयमादि प्रवृत्ति व्यवहार है। - पं. टोडरमलजी - यह ठीक नहीं, क्योंकि “किसी द्रव्य भाव का नाम निश्चय और किसी का व्यवहार" ऐसा नहीं है, किन्तु “एक ही द्रव्य के भाव को उस स्वरूप में ही वर्णन करना निश्चय नय है और उपचार से उस द्रव्य के भाव को अन्य द्रव्य के भावस्वरूप वर्णन करना व्यवहार है।” जैसे-मिट्टी के घड़े को मिट्टी का कहना निश्चय और घी का संयोग देखकर उपचार से उसे घी का घड़ा कहना व्यवहार है। गुमानीराम - समयसार में तो शुद्धात्मा के अनुभव को निश्चय और व्रत, शील, संयमादि को व्यवहार कहा है। पं. टोडरमलजी - शुद्धात्मा का अनुभव सच्चा मोक्षमार्ग है, अतः उसे निश्चय मोक्षमार्ग कहा है। तथा व्रत, तप आदि मोक्षमार्ग नहीं हैं, इन्हें निमित्तादिक की अपेक्षा उपचार से मोक्षमार्ग कहा है, अतः इन्हें व्यवहार मोक्षमार्ग कहते हैं। । अतः निश्चय नय से जो निरूपण किया हो उसे सच्चा ( सत्यार्थ) मानकर उसका श्रद्धान करना और व्यवहार नय से जो निरूपण किया हो उसको असत्य ( असत्यार्थ) मानकर उसका श्रद्धान छोड़ना। ३५ Please inform us of any errors on [email protected]
SR No.008327
Book TitleVitrag Vigyana Pathmala 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1996
Total Pages51
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Education, Spiritual, & Philosophy
File Size342 KB
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