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होते है। एक तरह से सब जगह जैन समाज में धार्मिक वातावरण छा
जाता है। निदेश - यह सिद्धचक्र क्या है ? इसके पाठ में क्या होता है ? जिनेश- सिद्धचक ? क्या तुमने कभी सिद्धचक्र का पाठ नहीं देखा ? निदेश – नहीं। जिनेश- सिद्ध तो मुक्त जीवों को कहते हैं। जो संसार के बंधनों से छूट गये
हैं, जिनमें अनन्त दर्शन, अनन्त ज्ञान और अनन्त सुख प्रकट हो गये हैं, जो अष्टकर्म से रहित हैं, राग-द्वेष के बन्धनों से मुक्त हैं, ऐसे अनन्त परमात्मा लोक के अग्रभाग में विराजमान हैं, उन्हें ही सिद्ध कहते हैं और उनका समुदाय ही सिद्धचक्र हुआ। अतः सिद्धचक्र के पाठ में सिद्धों की पूजन-भक्ति होती है। साथ ही उसकी जयमालाओं में बहुत सुन्दर आत्महित करने वाले तत्त्वोपदेश भी होते हैं जो कि
समझने योग्य हैं। निदेश - जयमाला में तो स्तुति होती है ? जिनेश- स्तुति तो होती ही है, साथ ही सिद्धों ने सिद्ध-दशा कैसे प्राप्त की,
__ इस सन्दर्भ में मुक्ति के मार्ग का भी प्रतिपादन हो जाता है। निदेश - क्या तुम उनका अर्थ मुझे समझा सकते हो ? जिनेश- नहीं भाई! जब सिद्धचक्र का पाठ होता है तो बाहर से बुलाये गये
या स्थानीय विशेष विद्वान् जयमाला का अर्थ करते हैं। उस समय हमें
ध्यान से समझ लेना चाहिए। निदेश- उनके पूजन-विधान से क्या लाभ ? जिनेश- हम उनके स्वरूप को पहिचान कर यह जान सकते हैं कि जैसी ये
आत्माएँ शुद्ध और पवित्र हैं, वैसा ही हमारा स्वभाव शुद्ध और निरंजन है और इनके समान मुक्ति का मार्ग अपनाकर हम भी इनके समान अनंत सुखी और अनंत ज्ञानी बन सकते हैं। यह पर्वराज दशलक्षण पर्व के बाद दूसरे नम्बर का धार्मिक महापर्व है।
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