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जिनेश - हाँ भाई! कार्तिक में तो प्रतिवर्ष आता ही है। पर यह तो वर्ष में तीन बार आता है। प्रष्टाह्निका पूजन में कहा है न
कार्तिक फागुन साढ़ के अंत आठ दिन माँहि ।
"
नन्दीश्वर सुर जात हैं,
हम पूजें इह ठाँहि ।।
कार्तिक सुदी अष्टमी से पूर्णिमा तक, फाल्गुन सुदी अष्टमी से पूर्णिमा तक और आषाढ़ सुदी अष्टमी से पूर्णिमा तक, वर्ष में तीन बार यह पर्व मनाया जाता हैं। देवता लोग तो इस पर्व को मनाने के लिए नन्दीश्वर द्वीप जाते हैं, पर हम वहाँ तो जा नहीं सकते, अतः यहीं भक्तिभाव से पूजा करते हैं ।
निदेश – यह नन्दीश्वर द्वीप कहाँ है ?
जिनेश- तुमने तीन लोक की रचना वाला पाठ पढ़ा था न। उसमें मध्य-लोक में जो असंख्यात द्वीप और समुद्र हैं, उनमें यह आठवाँ द्वीप है।
निदेश – हम वहाँ क्यों नहीं जा सकते ?
जिनेश- तीसरे पुष्कर द्वीप में एक पर्वत है, जिसका नाम है मानुषोत्तर पर्वत । मनुष्य उसके आगे नहीं जा सकता, इसलिए उसका नाम मानुषोत्तर पर्वत पड़ा है।
निदेश – अच्छा ! वहाँ ऐसा क्या है जो देव वहाँ जाते हैं ?
जिनेश- वहाँ बहुत मनोज्ञ अकृत्रिम ( स्वनिर्मित ) ५२ जिन मन्दिर हैं। वहाँ जाकर देवगण पूजा, भक्ति और तत्त्वचर्चा आदि के द्वारा आत्म-साधना करते हैं। हम लोग वहाँ नहीं जा सकते, अतः यहीं पर विविध धार्मिक आयोजनों द्वारा आत्महित में प्रवृत्त होते हैं।
निदेश – यह पर्व भारतवर्ष में कहाँ-कहाँ मनाया जाता है और इसमें क्या-क्या होता
है ?
जिनेश- सारे भारतवर्ष में जैन समाज इस महापर्व को बड़े ही उत्साह से मनाता है। अधिकांश स्थानों पर सिद्धचक्र - विधान का पाठ होता है, बाहर से विद्वान् बुलाये जाते हैं, उनके प्राध्यात्मिक विषयों पर प्रवचन
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