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पाठ ७
अहिंसा : एक विवेचन आचार्य अमृतचंद्र
( व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व) आध्यात्मिक सन्तों में कुन्दकुन्दाचार्य के बाद यदि किसी का नाम लिया जा सकता है तो वे हैं प्राचार्य अमृतचन्द्र। दुःख की बात है कि १० वीं शती के लगभग होने वाले इन महान् प्राचार्य के बारे में उनके ग्रन्थो के अलावा एक तरह से हम कुछ भी नहीं जानते। __ आपका संस्कृत भाषा पर अपूर्व अधिकार था। आपकी गद्य और पद्य -दोनों प्रकार की रचनाओं में आपकी भाषा भावानुवर्तिनी एवं सहज बोधगम्य, माधुर्य गुण से युक्त है। आप आत्मरस में निमग्न रहने वाले महात्मा थे, अंतः आपकी रचनायें अध्यात्म-रस से ओतप्रोत हैं।
आपके सभी ग्रन्थ संस्कृत भाषा में हैं। आपकी रचनायें गद्य और पद्य दोनों प्रकार की पाई जाती हैं। गद्य रचनाओं में प्राचार्य कुन्दकुन्द के महान् ग्रन्थों पर लिखी हुई टीकायें हैं -
१. समयसार टीका – जो “प्रात्मख्याति” के नाम से जानी जाती हैं। २. प्रवचनसार टीका – जिसे “ तत्त्व-प्रदीपिका” कहते हैं। ३. पञ्चास्तिकाय टीका - जिसका नाम “ समय व्याख्या” हैं। ४. तत्त्वार्थ सार – यह ग्रन्थ गृद्धपिच्छ उमास्वामी के गद्य सूत्रों का एक
तरह से पद्यानुवाद है। ५. पुरुषार्थसिद्धयुपाय – यह गृहस्थ धर्म पर आपका मौलिक ग्रन्थ है। इसमें ___ हिंसा और अहिंसा का बहुत ही तथ्यपूर्ण विवेचन किया गया है। प्रस्तुत निबन्ध आपके ग्रन्थ पुरुषार्थसिद्ध्युपाय पर आधारित है।
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