________________
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
प्रबोध - क्या बात करते हो, बिना आत्मज्ञान के कोई मुनि बन ही नहीं सकता। सुबोध – तो आत्मज्ञान के बिना यह क्रियाकाण्ड (बाह्याचरण या व्यवहार
चारित्र) सब बेकार है क्या ? प्रबोध - सुनों भाई! मूल वस्तु तो आत्मा को समझ कर उसमें लीन होना है।
आत्मविश्वास (सम्यग्दर्शन), आत्मज्ञान (सम्यग्ज्ञान) और आत्मलीनता (सम्यक्चारित्र) जिसमें हो तथा जिसका बाह्याचरण भी
आगमानुकूल हो, वास्तव में सच्चा गुरु तो वही है। सुबोध – तो तुम इनकी ही पूजन करने जाते होंगे। हम भी चला करेंगे, पर
यह तो बताओ इससे हमें मिलेगा क्या ? प्रबोध - फिर तुमने नासमझी की बात की। पूजा इसलिए की जाती है कि
हम भी उन जैसे बन जावें। वे सब कुछ छोड़ गये, उनसे संसार का
कुछ माँगना कहाँ तक ठीक है ? सुबोध – अच्छा ठीक है, कल से हमें भी ले चलना।
प्रश्न
१. पूजन किसकी और क्यों करना चाहिये ? २. सच्चा देव किसे कहते हैं ? । ३. शास्त्र किसे कहते हैं ? उसकी सच्चाई का आधार क्या हैं ? ४. गुरु किसे कहते है ? उनकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए। क्या विद्यागुरु
गुरु नहीं हैं ? ५. संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए -
वीतराग, सर्वज्ञ, हितोपदेशी । ६. प्राचार्य समन्तभद्र के व्यक्तित्व और कर्त्तत्व पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए ?
Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com