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हे गुरुवर ! शाश्वत सुख - दर्शक, यह नग्न-स्वरूप तुम्हारा हैं जग की नश्वरता का सच्चा, दिग्दर्शन करने वाला हैं ।। जब जग विषयों में रच-पच कर गाफिल निद्रा में सोता हो । अथवा वह शिव के निष्कंटक, पथ में विष - कंटक' बोता हो ।। हो अर्ध निशा का सन्नाटा, वन में वनचारी चरते हों। तब शांत निराकुल मानस तुम, तत्त्वों का चिंतन करते हो । । करते तप शैल नदी तट पर, तरुतल' वर्षा की झड़ियों में । समता रस पान किया करते, सुख दुःख दोनों की घड़ियों में ।। अन्तरज्वाला हरती वाणी, मानों झड़ती हों फुलझडियाँ । भव-बन्धन तड़-तड़ टूट पड़ें, खिल जावें अन्तर की कलियाँ ।। तुम - सा दानी क्या कोई हो, जग को दे दीं जग की निधियाँ। दिन-रात लुटाया करते हो, सम-सम की अविनश्वर मणियाँ ।। ॐ ह्रीं श्री देवशास्त्रगुरुभ्यो अनर्घपद प्राप्तये अर्घं निर्वपामीति स्वाहा। हे निर्मल देव! तुम्हें प्रणाम, हे ज्ञानदीप आगम ! प्रणाम । शांति, त्याग के मूर्तिमान, शिव - पथ-पंथी गुरुवर प्रणाम ।।
प्रश्न -
१.
चंदन और नैवेद्य के छंदों को लिखकर उनका भाव अपने शब्दों में लिखिए।
२.
जयमाला में क्या वर्णन है ? संक्षेप में लिखें।
३. संसार भावना व संवर भावना वाले छंद लिखकर उनका भाव समझाइये ।
१. दिखानेवाला। २. पंचेन्द्रियों के विषय - भोगों में । ३. लीन होकर । ४. कांटों से रहित। ५. विषय-भोगरूपी कांटे । ६. आधी रात । ७. पर्वत । ८. वृक्षों के नीचे । ९. हृदय की ज्वाला । १०. समता और शान्ति ।
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