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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates अनित्य प्रशरण बारह भावना द्रव्य रूप करि सर्व थिर, परजय थिर है कौन। द्रव्य दृष्टि आपा लखो, परजय नय करि गौन।। शुद्धातम अरु पंच गुरु, जग में सरनौ दोय। मोह उदय जिय के वृथा, पान कल्पना होय।। पर द्रव्यन तैं प्रीति जो, है संसार अबोध। ताको फल गति चार में, भ्रमण कह्यो श्रुत शोध।। संसार प्रेकत्व परमारथ तें प्रातमा, एक रूप ही जोय । कर्म निमित्त विकलप घने, तिन नासे शिव होय।। अन्यत्व अपने अपने सत्त्वपू, सर्व वस्तु विलसाय । ऐसें चितवै जीव तब, परतें ममत न थाय।। अशुचि निर्मल अपनी आतमा, देह अपावन गेह । जानि भव्य निज भाव को, यासों तजो सनेह।। प्रास्त्रव आतम केवल ज्ञानमय, निश्चय-दृष्टि निहार । सब विभाव परिणाममय, प्रास्त्रवभाव विडार ।। संवर निज स्वरूप में लीनता, निश्चय संवर जानि। समिति गुप्ति संजम धरम, धरै पाप की हानि ।। ३० Please inform us of any errors on [email protected]
SR No.008323
Book TitleVitrag Vigyana Pathmala 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1993
Total Pages35
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Education, Spiritual, & Philosophy
File Size447 KB
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