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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates मुनिराज ने अपना पद त्यागकर बावनिया का भेष बनाया और बलि के दरबार में पहुँचे। बलि ने उनसे इच्छानुसार वस्तु माँगने की प्रार्थना की। उन्होंने अपने कदमों से तीन कदम भूमि माँगी। जब बलि ने तीन कदम भूमि देना स्वीकार कर लिया तो उन्होंने अपने शरीर को बढ़ा लिया और समस्त भूमि को दो पगों मैं ही नाप लिया। इस तरह बलि को परास्त कर मुनिराजों की रक्षा की। वह दिन श्रावण की पूर्णिमा का था। अतः उसी दिन से रक्षाबंधन पर्व चल पड़ा। मुनिराजों की रक्षा हुई और बलि का बंधन हुआ। छात्र - क्या मुनि की भूमिका में भी यह सब हो सकता है ? अध्यापक - नहीं भाई! तुमने ध्यान से नहीं सुना। हमने कहा था न कि उन्होंने मुनिपद छोड़कर बावनिया का भेष बनाया। यह कार्य उनके पद के योग्य न था, तभी तो उनको प्रायश्चित्त लेना पड़ा, दुबारा दीक्षा लेनी पड़ी। छात्र - धन्य है उन मुनि विष्णुकुमार को। अध्यापक - वास्तव में धन्य तो वे अकंपनाचार्य आदि मुनिराज हैं, जिन्हें इतनी विपत्तियाँ भी आत्मध्यान से न डिगा सकीं। छात्र - हाँ! और वे श्रुतसागर मुनि, जिन्होंने बलि आदि से विवाद कर उनका मद खंडित किया। अध्यापक - उनकी विद्वत्ता तो प्रशंसनीय है पर दुष्टों से उलझना नहीं चाहिये था। आत्मा की साधना करने वाले को दुष्टों से उलझना ठीक नहीं। छात्र - क्यों ? अध्यापक - देखो न, उसी के परिणामस्वरूप तो इतना झगड़ा हुआ। अतः प्रत्येक आत्मार्थी को चाहिये कि वह जगत् के प्रपंचों से दूर रहकर तत्त्वाभ्यास में प्रयत्नशील रहे। यही संसार-बंधन से रक्षा का सच्चा उपाय है। प्रश्न - १. रक्षाबंधन कथा अपने शब्दों में लिखिये। २. मुनि विष्णुकुमार को उपसर्ग निवारणार्थ मुनिपद क्यों छोड़ना पड़ा ? ३. श्रुतसागर मुनिराज को अकंपनाचार्य ने वाद-विवाद के स्थान पर जाकर रात्रि में ध्यानस्थ होने का आदेश क्यों दिया ? ४. उक्त कथा पढ़ कर जो भाव पैदा होते हैं, उन्हें व्यक्त कीजिये। ' जिसका शरीर बहुत छोटा बावन अंगुल का होता हैं, उसको बावनिया कहते हैं। २४ Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008323
Book TitleVitrag Vigyana Pathmala 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1993
Total Pages35
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Education, Spiritual, & Philosophy
File Size447 KB
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