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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates हे भगवन् ! पदार्थों का सर्वथा सद्भाव ही मानने पर प्रभावों का प्रभाव (लोप) मानना होगा। इस प्रकार प्रभावों को नहीं मानने से सब पदार्थ सर्वात्मक हो जावेंगे, सभी अनादि व अनंत हो जावेंगे, किसी का कोई पृथक् स्वरूप ही न रहेगा; जो कि आपको स्वीकार नही है।। ९ ।। कार्यद्रव्यमनादि स्यात् प्रागभावस्य निहवे । प्रध्वंसस्य च धर्मस्य प्रच्यवेऽनन्ततां व्रजेत्।।१०।। प्रागभाव का प्रभाव मानने पर समस्त कार्य ( पर्यायें ) अनादि हो जावेंगे। इसी प्रकार प्रध्वंसाभाव नहीं मानने पर सभी कार्य (पर्यायें ) अनन्त हो जावेंगे।। १०।। सर्वात्मकं तदेकं स्या दन्याऽपोहव्यतिक्रमे । अन्यत्र समवाये न व्यपदिश्येत सर्वथा ।।११।। यदि अन्योन्याभाव को नहीं मानेंगे तो दृश्यमान सर्व पदार्थ ( पुद्गल ) वर्तमान में एकरूप हो जावेंगे और अत्यन्ताभाव न मानने पर सर्व द्रव्य त्रिकाल एकरूप हो जाने से किसी भी द्रव्य का व्यपदेश (कथन) भी नहीं बन सकेगा ।।११।। अभावैकान्त पक्षेऽपि भावापहववादिनाम् । बोधवाक्यं प्रमाणं न केन साधन दूषणम् ।।१२।। भाव का सर्वथा प्रभाव मानने वाले प्रभावैकान्तवादियों के भी ज्ञान और वचनों की प्रामाणिकता के अभाव में, वे स्वमत की स्थापना और परमत का खण्डन किस प्रकार करेंगे ? अतः अभावैकान्त भी ठीक नहीं हैं।। १२।। ७२ Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008320
Book TitleTattvagyan Pathmala 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages76
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Education, Spiritual, & Philosophy
File Size394 KB
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